Book Title: Pratikraman Aalochana Samayik Path
Author(s): Jain Mumukshu Mahila Mandal
Publisher: Jain Mumukshu Mahila Mandal

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Page 152
________________ १४६] [प्रतिक्रमण-आवश्यक २. जिनवाणी पर वस्तु छ। ते आत्माने कांई लाभ-नुकसान करी शके नहि; पण जीवने ज्यारे सम्यग्ज्ञान प्रथम थाय त्यारे जिनवाणी निमित्तरूप होय छे एवं ज्ञान कराववा माटे आ श्लोकमां व्यवहारथी कथन कराव्युं छे। ३. जे सम्यग्ज्ञान छे ते ज सरस्वतीनी सत्य मूर्ति छे; तेमां पण संपूर्ण ज्ञान केवळज्ञान छे-के जेमां सर्व पदार्थो प्रत्यक्ष भासे छेते, अनंत धर्मयुक्त आत्मतत्त्वने प्रत्यक्ष देखे छे; तेथी ते सरस्वतीनी मूर्ति छ। तद्नुसार जे श्रुतज्ञान छे ते आत्मतत्त्वने परोक्ष देखे छे तेथी ते पण सरस्वतीनी मूर्ति छ। वळी वचनरूप द्रव्यश्रुत पण तेनी मूर्ति छ। कारण के वचनो द्वारा अनेक धर्मयुक्त आत्माने ते बतावे छ। ' आ रीते सर्व पदार्थोना तत्त्वने जणावनार ज्ञानरूप तथा वचनरूप अनेकांतमयी सरस्वतीनी मूर्ति छ। सरस्वतीना नाम वाणी, भारती, शारदा, वाग्देवी, वागेश्वरी, वाग्देवता, शंकरी इत्यादि घणां छे। ४. लौकिकमां जे सरस्वतीनी मूर्ति प्रसिद्ध छे ते यथार्थ नथी।१०। जिनवाणीरूप सरस्वतीना निमित्त बोधि आदिनी प्राप्ति :बोधिः समाधि परिणामशुद्धिः स्वात्मोपलब्धिः शिवसौख्यसिद्धिः। चिन्तामणिं चिन्तितवस्तुदाने, त्वां वंद्यमानस्य ममास्तु देवि ।।१६॥ अन्वयार्थ :- [ देवि] हे सरस्वती-जिनवाणी देवी! (तुं) [चिन्तितवस्तुदाने] चिंतवेली वस्तुनुं दान करवामां. [चिन्तामणि] चिन्तामणि छो। (तेथी) [त्वां वंद्यमानस्य] तने वंदन करता एवा [मम] मने [बोधिः] रत्नत्रयनी प्राप्तिरूप धर्म, [समाधिः ]

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