Book Title: Pratikraman Aalochana Samayik Path
Author(s): Jain Mumukshu Mahila Mandal
Publisher: Jain Mumukshu Mahila Mandal
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प्रतिक्रमण-आवश्यक ]
[१४७
आत्मलीनतारूप समाधि [ परिणामशुद्धिः ] परिणामोनी शुद्धता [ स्वात्म - उपलब्धिः ] निज आत्मस्वरूपनी प्राप्ति (अने) [ शिवसौख्यसिद्धिः ] मोक्ष सुखनी सिद्धि [ अस्तु ] थाओ ।
विशेषार्थ
१. आ श्लोकमां जिनवाणीनुं माहात्म्य वर्णव्युं छे अने निज स्वभावनी भावना करी छे; जिनवाणीनुं माहात्म्य व्यवहारनये छे । निश्चयनये (खरी रीते ) आत्माना सम्यग्ज्ञाननुं माहात्म्य छे । जीव ज्यारे सम्यग्दर्शनादि प्रकट करे छे त्यारे जिनवाणी ऊपर निमित्त तरीकेनो आरोप आवे छे, तेथी जिनवाणी निमित्त कहेवाय छे। मुमुक्षुओने राग होय त्यारे जिनवाणी तरफ लक्ष जतां तेनुं माहात्म्य आव्या वगर रहेतुं नथी; पण पोताना त्रिकाळी शुद्ध स्वरूप तरफ लक्ष करतां सम्यग्दर्शन प्रगटे छे अने त्यारपछी क्रमेक्रमे राग टाळीने जीव विशेष स्वरूपलीनता करे छे ।
२. चिंतववा लायक वस्तु एक शुद्धात्म ज छे । तेनुं स्वरूप जिनवाणी द्वारा ज जाणी शकाय छे एम अहीं बताव्युं छे ।
३. सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्र जे अप्राप्य हतां तेनी प्राप्ति बोधि छे। अने तेमनुं निर्विघ्नपणे भवांतरमां साथे लइ जनुं ते समाधि छे।
हवे छ गाथामां देवाधिदेवनी स्तुति करवामां आवे छे :
यः स्मर्यते सर्वमुनीन्द्रवृन्दै – र्यः स्तूयते सर्वनरामरेन्द्रैः । यो गीयते वेदपुराणशास्त्रैः स देवदेवो हृदये ममास्ताम् ॥१२॥ अन्वयार्थ : – [यः ] जे [सर्वमुनीन्द्रवृन्दैः ] सर्व मुनीश्वरोना समूहो [स्मर्यते ] याद कराय छे - स्मराय छे, [यः ] जे [ सर्व नर- अमर

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