Book Title: Pratikraman Aalochana Samayik Path
Author(s): Jain Mumukshu Mahila Mandal
Publisher: Jain Mumukshu Mahila Mandal
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प्रतिक्रमण - आवश्यक ]
[ १६६
अन्वयार्थ :- [ इति ] आ प्रमाणे [ द्वात्रिंशतैर्वृत्तैः ] बत्रीश श्लोको द्वारा [ यः ] जे [ अनन्यगतचेतरकः ] एकाग्रचित्तः चैतन्य (आत्मा) [ परमात्मानम् ] परमात्माने [ ईक्षत्ते ] जुए छे – अनुभवे छे (ते ) [ असौ ] आ [ अव्ययम् पदम् ] अविनाशीपद - मोक्ष प्रत्ये [ याति ] जाय छे। विशेषार्थ
आ श्लोको मात्र मुखथी बोली जवाना नथी, परन्तु तेना अर्थ समझी तेना भावनुं भासन थवानी जरूर छे । माटे तेना भाव समझी पोताना त्रिकालशुद्ध अखंड चिदानंद परमात्मस्वरूपना श्रद्धा-ज्ञान करी, तेमां ज लक्ष करी, स्थिर थयुं ते सामायिकनुं प्रयोजन छे अने तेनुं फळ सिद्धिपदनी प्राप्ति छे । ३३ ।

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