Book Title: Pratikraman Aalochana Samayik Path
Author(s): Jain Mumukshu Mahila Mandal
Publisher: Jain Mumukshu Mahila Mandal

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Page 169
________________ [१६३ प्रतिक्रमण-आवश्यक] एम ने एम ऊभा रह्यां छे। आथी सिद्ध थाय छे के पुण्य, दुःख मटाडवानो उपाय नथी एटले के पुण्यथी धर्म थाय के ते धर्मने सहायक थाय एम नथी। आ रीते पुण्य-पाप रहित निज स्वभावनो निर्णय करी, त्रिकालशुद्ध चैतन्यस्वरूप तरफ वळ्या विना कदी धर्मनी शरुआत थाय नहि ने दुःख मटे नहि। अज्ञानी पुण्यने धर्मर्नु परंपरा कारण माने छे ते मिथ्या मान्यता छे; अज्ञानीने पुण्य सर्व अनर्थy परंपरा कारण थाय छे एम श्री पंचास्तिकायनी १६७ मी गाथा अने तेनी टीकाओमां कह्यु छ। - ३. आत्मामांथी खसी, मन-वचन-काया तरफनुं जोडाण थया विना परलक्ष थाय नहि; सम्यग्दृष्टिने, अभिप्रायमाथी प्रथम मनवचन-काया तरफनुं जोडाण सर्वथा टळी जाय छे अने पछी स्वरूप स्थिरतावडे जेम जेम चारित्र दोष टळतो जाय छे तेम तेम मनवचन-काया तरफनुं जोडाण छूटतुं जाय छे। आ ज सुख प्राप्त करवानो साचो उपाय छे एम आ श्लोकमां दर्शाव्युं छे ।२८। विकल्प जाळ तोडीने आत्मामां लीन थवानो उपदेशःसर्वं निराकृत्य विकल्पजालं, संसारकान्तारनिपातहेतुम् । विविक्तमात्मानमवेक्ष्यमाणो, निलीयसे त्वं परमात्मतत्त्वे ॥२६॥ अन्वयार्थ :- [संसारकान्तारनिपातहेतुम् ] संसाररूप दुर्गम जंगलमां भटकाववानी हेतुरूप. [सर्वं विकल्पजालं] . सर्व विकल्प जाळ [निराकृत्य] हठावी-तोडी [विविक्तम्] सर्वथी भिन्न [आत्मानम्] आत्माने [अवेक्ष्यमाणः] अवलोकी [त्वं] तुं [परमात्वतत्त्वे] परमात्मतत्त्वमां [निलीयसे] लीन था। विशेषार्थ हुं परनुं करी शकुं अने पर मारुं करी शके अथवा एक


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