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[प्रतिक्रमण-आवश्यक क्षमा करें मेरा सब प्राणियों से मैत्री भाव है किसी से बैर भाव नहीं है।
. (श्लोक) समता सर्व भूतेषु संयमः शुभ भावना।
आर्त रौद्र परित्याग स्तद्धि सामायिकं व्रतम् ।। अर्थ-सर्व प्राणियों में सम भाव रखना संयम पालन करना, पवित्र भाव रखना तथा आर्त-रौद्र परिणामों को छोड़ना ही सच्चा सामायिक व्रत है।
(श्लोक) साम्य मे सर्व भूतेषु, वैर मम न केनचित् ।
आशा सर्वाः परित्यज्य समाधि महमाश्रये ।। अर्थ-मैं सम्पूर्ण प्राणियों में समता रखता हूँ किसी से बैर भाव नहीं है। मैं सर्व आशाओं को छोड़कर समाधि का आश्रय लेता
(श्लोक) रागात् द्वेषात् ममत्वाता हा मया ये विराधिताः।
क्षम्यन्तु जन्तवस्ते मे, तेभ्यो क्षाम्याम्यहं पुनः।। अर्थ-राग, द्वेष अथवा मोह से मैंने किसी जीव का विराधन किया हो तो वे मुझ पर क्षमा करें, मैं भी उनसे बार---बार क्षमा चाहता हूँ।
(श्लोक) मनसा, वपुषा वाचा, कृत कारित सम्मतैः। रत्नत्रये भवाः दोषान् गहें निन्दामि वर्जये ।।