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[प्रतिक्रमण-आवश्यक
पाठ १ लो
मंगलाचरण : नमस्कार-मंत्र णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं । णमो उवज्झायाणं णमो लोए सबसाहूणं ॥
अर्थ :-श्री अरिहंतोने नमस्कार हो, सिद्धोने नमस्कार हो, आचार्योने नमस्कार हो, उपाध्यायोने नमस्कार हो अने लोकमां रहेला सर्व साधुओने नमस्कार हो.'
अरिहंत सिद्ध आचार्य ने, उपाध्याय मुनिराज, ..पंच पद व्यवहारथी, निश्चये आत्मामां ज. १०४२
पाठ २ जोगिकी
वंदना (तिक्खुत्तो) तिक्खुत्तो, आयाहिणं, पयाहिणं, वंदामि, णमंसामि, सक्कारेमि, सम्माणेमि, कल्लाणं, मंगलं, देवयं, चेईयं, पज्जुवासामि.
अर्थ :-पंच परमेष्ठीने बे हाथ जोडी आवर्तनथी त्रण वखत प्रदक्षिणा करी हुं स्तुति करुं छु, नमस्कार करुं छु; विनयथी सत्कार कर छु, विवेकपूर्वक सन्मान करें छु. हे पूज्य ! आप कल्याणरूप, मंगलरूप, देवरूप, ज्ञानरूप छो तेथी आपनी पर्युपासना-सेवा करें छु.
१. आ पंच परमेष्ठीनुं स्वरूप मोक्षमार्गप्रकाशक (गुजराती) पाना २ थी ६
सुधीमां छे, जिज्ञासुओ त्यांथी जोइ लेवू. २. योगीन्द्रदेवकृत योगसारमाथी