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[प्रतिक्रमण-आवश्यक ते ते पुरुषो सर्व स्वरूपने पाम्या छे; आधि, व्याधि, उपाधि सर्व संगथी रहित थया छे, थाय छे अने भाविकाळमां पण तेम ज थशे. . जे सत्पुरुषोओ जन्म, जरा, मरणनो नाश करवावाळो, स्वस्वरूपमा सहज अवस्थान थवानो उपदेश. कह्यो छे, ते सत्पुरुषोने अत्यंत भक्तिथी नमस्कार छे. तेनी निष्कारण करुणाने नित्य प्रत्ये निरंतर स्तववामां पण आत्मस्वभाव प्रगटे छे, ओवा सर्व सत्पुरुषो, तेना चरणारविंद सदाय हृदयने विषे स्थापन रहो ! __ जे छ पदथी सिद्ध छे अर्बु आत्मस्वरूप ते जेनां वचनने अंगीकार कर्ये सहजमां प्रगटे छे, जे आत्मस्वरूप प्रगटवाथी सर्वकाळ जीव संपूर्ण आनंदने प्राप्त थई निर्भय थाय छे, ते वचनना कहेनार ओवा सत्पुरुषना गुणनी व्याख्या करवाने अशक्ति छे, केम के जेनो प्रत्युपकार न थई शके अवो परमात्मभाव ते जेणे कंई पण इच्छ्या विना मात्र निष्कारण करुणाशीलताथी आप्यो, ओम छतां पण जेणे अन्य जीवने विषे आ मारो शिष्य छे, अथवा भक्तिनो कर्ता छ, माटे मारो छे, ओम कदी जोयुं नथी, ओवा जे सत्पुरुष, तेने अत्यंत भक्तिओ फरी फरी नमस्कार हो!
जे सत्पुरुषोओ सद्गुरुनी भक्ति निरूपण करी छे, ते भक्ति मात्र शिष्यना कल्याणने अर्थे कही छे. जे भक्तिने प्राप्त थवाथी सद्गुरुना आत्मानी चेष्टाने विषे वृत्ति रहे, अपूर्व गुण दृष्टिगोचर थई अन्य स्वच्छंद मटे, अने सहेजे आत्मबोध थाय ओम जाणीने जे भक्तिन निरूपण कर्यु छे, ते भक्तिने अने ते सत्पुरुषोने फरी फरी त्रिकाळ नमस्कार हो!
जो कदी प्रगटपणे वर्तमानमा केवळज्ञाननी उत्पत्ति थई नथी, पण जेना वचनना विचारयोगे शक्तिपणे केवळज्ञान छे अम स्पष्ट जाण्युं छे, श्रद्धापणे केवळज्ञान थयुं छे, विचारदशाओ केवळज्ञान थयु