Book Title: Prashnavyakaran Sutram Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj Publisher: Jain Shastroddhar Samiti View full book textPage 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वरूप का निरूपण ६८५-६८८ ९० 'क्रोधनिग्रहरूप' दूसरी भावना का निरूपण ६८९-६९२ ९१ 'कोभनिग्रहरूप ' तीसरी भावना का निरूपण ६९३-६९६ ९२ 'धैर्य' नाम की चौथी भावना के स्वरूप का निरूपण ६९७-७०० ९३ पांचवी ' मौन' भावना के स्वरूप का निरूपण ७००-७०४ ९४ अध्ययन का उपसंहार ७०५-७१० तीसरा अध्ययन ९५ अदत्तदानविरमण के स्वरूप का निरूपण ७११-७२१ ०६ कैसा मुनि अदत्तादानादि व्रत का आराधन नहीं - करते उसका निरूपण ७२२-७२७ ९७ कैसा मुनि इस व्रत का पालन कर सकते है उसका निरूपण ७२७-७४० १८ 'विविक्तवसतिवास' नाम की प्रथम भावना का निरूपण ७४१-७४७ ९१ 'अनुज्ञातसंस्तारक' नामकी दूसरी भावना का निरूपण ७४८-भ५१ १०१ शय्यापरिकर्म वर्जन' रूप तीसरी भावना का निरूपण ७५२-७५६ १०१ ' अनुज्ञातभक्त ' नामक चौथी भावना का निरूपण ७५७-७६० १०२ 'विनय ' नामकी पांची भावना का निरूपण ७६१-७६४ १०३ अध्ययन का उपसंहार ७६५-७७० चौथा अध्ययन १०४ ब्रह्मचर्यके स्वरूप का निरूपण ७७१-७८८ १०५ ब्रह्मचर्य आराधन का फल ७८९-७९५ १०६ ब्रह्मचारो को आचरणीय और अनाचणीय आदिका निरूपण ७९६-८०३ १०७ ‘असंसक्त वासवसति' नामकी प्रथम भावना का निरूपण ८०४-८०८ १०८ ‘स्वीकथा विरति ' नामकी दूसरी भावना का निरूपण ८०९-८१५ १०९ ' स्त्रीरूप निरीक्षण ' वर्जन नामकी तीसरी भावना का निरूपण ८१६-८१८ ११० 'पूरत पूर्वक्रीडितादि' विरति नामकी चौथी भावना का निरूपण ८१९-८२५ १११ 'मणीतभोजनवर्जन' नामकी पांचवी भावना का निरूपण ८२६-८२९ ११२ चतुर्थ अध्ययन का उपसंहार For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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