Book Title: Prakrit evam Sanskrit Sahitya ke Jain Aalekh
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 11
________________ एक महत्त्वपूर्ण विधा कथा साहित्य भी प्राकृत भाषा में विपुल रूप में पाया जाता है। इनके आचार.व्यवहार खगोल-भूगोल और ज्योतिष सम्बंधी कुछ ग्रंथ भी प्राकृत भाषा में ही पाये जाते है। जहाँ तक जैनदर्शन सम्बंधी ग्रंथों का प्रश्न है, सन्मतितर्क (सम्मसुत्त), नवतत्त्वपयरण, पंचास्तिकाय जैसे कुछ ही ग्रंथ प्राकृत में मिलते है, यद्यपि प्राकृत आगम साहित्य में भी जैनो का दार्शनिक चिन्तन पाया जता है। इसी क्रम में जैनधर्म के ध्यान और योग सम्बंधी भी अनेक ग्रंथ भी प्रांकृत भाषा में निबद्ध है। प्राकृत साहित्य बहुआयामी है। यदि कालक्रम की दृष्टि से इस पर विचार किया जाये, तो हमे ज्ञात होता है, कि जैनों का प्राकृत भाषा में निबद्ध साहित्य ई.पू. पांचवी शती से लेकर ईसा की 20वीं शती तक लिखा जाता रहा है। इस प्रकार प्राकृत के जैन साहित्य का इतिहास लगभग ढाई सहस्राब्दि का इतिहास है। अत: यहाँ हमें इस सब पर क्रमिक दृष्टि से विचार करना होगा। जैन प्राकृत आगम साहित्य प्राकृत जैन साहित्य के इस सर्वेक्षण में प्राचीनता की दृष्टि से हमे सर्वप्रथम जैन आगम साहित्य पर विचार करना होगा। हमारी दिगम्बर परम्परा आगम साहित्य को विलुप्त मानती है, यह भी सत्य और तथ्य है कि आगम साहित्य का विपुल अंश और उसके अनेक ग्रंथ आज अनुपलब्ध है, किन्तु इस आधार पर यह मान लेना कि आगम साहित्य पूर्णत: विलुप्त हो गया, उचित नहीं होगा। जैनधर्म की यापनीय एवं श्वेताम्बर शाखाएं आगमों का पूर्ण विलोप नहीं मानती है। आज भी आचारांग, सूत्रकृतांग, ऋषिभाषित आदि ग्रंथो में प्राचीन सामग्री अशंत: ही सही, किन्तु उपलब्ध है। आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध के अनेक सूत्र और ऋषिभाषित (इसिभासियाइं) इस बात के प्रमाण है कि प्राकृत जैन साहित्य औपनिषदिक काल में भी जीवन्त था। यहां तक कि आचारांग के प्रथम श्रुतस्कंध के अनेक सूत्र औपनिषदिक सूत्रों से यथावत समानता रखते है। वही इसिभासियाइं याज्ञवल्क्य आदि 22 औपनिषदिक ऋषियों, अनेक बौद्धभिक्षुओं जैसे- सारिपुत्त, वज्जीयपुत्त और महाकाश्यप, आजीचक मंखलिगोशाल एवं अन्य विलुप्त प्राय: श्रमणधाराओं के ऋषियों के उपदेशो को प्राचीनतम प्राकृत भाषा में यथार्थ रूप से प्रस्तुत करता है। इसिभासियाई में 45 ऋषियों के उपदेश संकलित है। इनमें मात्र पार्व और वर्द्धमान [7]

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