Book Title: Prakrit evam Sanskrit Sahitya ke Jain Aalekh Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur View full book textPage 9
________________ जैनों का प्राकृत साहित्य : एक सर्वेक्षण - भारतीय संस्कृति एक समन्वित संस्कृति है। अति प्राचीनकाल से ही इसमें दो धाराएँ प्रवाहित होती रही हैं- वैदिक और श्रमण / यद्यपि ये दो स्वतंत्र धाराएँ मूलत: मानव जीवन के दो पक्षों पर आधारित रही है। मानव जीवन स्वयं विरोधाभासपूर्ण है? वासना (जैविक पक्ष/शरीर) और विवेक (अध्यात्म) - ये दोनो तत्त्व उसमें प्रारम्भ से ही समन्वित है। परम्परागत दृष्टि से इन्हें शरीर और आत्मा भी कह सकते है। जैसे ये दोनो पक्ष हमारे व्यक्तित्व को प्रभावित करते रहते है, वैसे ही ये दोनो संस्कृतियां भी एक दूसरे को प्रभावित करती रही हैं। भाषा की दृष्टि से भी ये दोनो संस्कृतियां भी दो भिन्न भाषाओं के साहित्य से पुष्ट होती रही है। जहां वैदिक संस्कृति में संस्कृत की प्रधानता रही है, वही श्रमण संस्कृति में लोकभाषा या प्राकृत की प्रधानता रही है। आदि काल से ही वैदिक धारा की साहित्यिक गतिविधियां संस्कृत केन्द्रित रही हैयद्यपि उसमें संस्कृत के तीन रूप पाये जते है-1. छान्दस्, 2. छान्दस् प्रभावित पाणिणीय संस्कृत और 3. साहित्यिक व्याकरण-परिशुद्ध संस्कृत। छान्दस्, ये मूलत: वेदों की भाषा है। ब्राह्मण ग्रंथो पर तो छान्दस् का ही अधिक प्रभाव रहा है, किन्तु आरण्यकों और उपनिषदों की भाषा छान्दस् प्रभावित पाणिणीय व्याकरण से परिमार्जित साहित्यिक संस्कृत रही है। पुराण आदि परवर्ती वैदिक परम्परा का साहित्य-व्याकरण परिशुद्ध साहित्यिक संस्कृत में ही देखा जाता है। जबकि श्रमणधारा ने प्रारम्भ से ही लोकभाषा को अपनाया। देश और काल की अपेक्षा से इसके भी अनेक रूप पाये जाते हैं, यथा- मागधी, पाली, पैशाची, अर्द्धमागधी, शौरसेनी, महाराष्ट्री और अपभ्रंश। बौद्धो का परंपरागत त्रिपिटक साहित्य पाली भाषा में है, ये मूलत: मागधी और अर्धमागधी के निकट है। वहीं जैन परम्परा का साहित्य मूलत: अर्धमागधी, शौरसेनी, महाराष्ट्री और अपभ्रंश में पाया जाता है। यहां यह ज्ञातव्य है, कि जहां जैन धर्म की श्वेताम्बर शाखा का साहित्य अर्धमागधी और महाराष्ट्री प्राकृत में है, वहीं दिगम्बर एवं यापनीय शाखा का साहित्य, शौरसेनी प्राकृत में पाया जाता है। यहां यह भी ज्ञातव्य है कि छान्दस्, अभिलेखीय प्राकृत, पाली और प्राचीन अर्द्धमागधी एक दूसरे से अधिक दूर भी नही है। वस्तुत: सुदूर क्षेत्र - [5]Page Navigation
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