Book Title: Prakrit evam Jainvidya Shodh Sandarbha Author(s): Kapurchand Jain Publisher: Kailashchandra Jain Smruti NyasPage 53
________________ प्राकृत एवं जैनविद्या : शोध-सन्दर्भ 45 105. सिंह, राजेन्द्र प्रताप महाकवि स्वयम्भू : काव्य सौन्दर्य एवं दर्शन गढ़वाल, 1997, अप्रकाशित नि०- डा० एस० सी० शर्मा हिन्दी विभाग, हेमवतीनन्दन बहुगुणा गढ़वाल वि० वि०, श्रीनगर (उत्तरांचल) 106. सिंह, रामाधार अपभ्रंश का वाक्य विन्यास । कोलकाता, 1973, अप्रकाशित 107. सिंह, वासुदेव अपभ्रंश और हिन्दी (अठारहवीं शती तक के जैन रहस्यवाद का अध्ययन) आगरा, 1992, प्रकाशित (समकालीन प्रकाशन, वाराणसी) हिन्दी विभाग, काशी विद्यापीठ, वाराणसी (उ०प्र०) 108. सिंह. सुरेन्द्र बहादुर अपभ्रंश मुक्तक काव्य परम्परा का हिन्दी मुक्तक काव्य पर प्रभाव लखनऊ, 1984, अप्रकाशित 109. Sengupta, Murari Mohan History of Apabhransh Language & Literature. Jadavpur, 1968, Unpublished. संस्कृत भाषा एवं साहित्य SANSKRIT LANGUAGE AND LITERATURE 110. अग्रवाल, पुष्पा (सुश्री) जैन संस्कृत महाकाव्यों (800 से 1408 ई० तक) में रस विवेचन दिल्ली, 1978, अप्रकाशित 111. अग्रवाल, लताकुमारी (श्रीमती) प्रभाचन्द कृत आराधना कथाप्रबन्ध अथवा कथाकोष का आलोचनात्मक अध्ययन बरेली, 1994, अप्रकाशित नि०- डा० रमेशचंद जैन, बिजनौर द्वारा- श्री विजयकुमार 'अन्ना' एडवोकेट, बुखारा P.0. बिजनौर (उ०प्र०) 112. अग्रवाल, सन्तोष (श्रीमती) धनंजय के द्विसंधान महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन मेरठ, 1981, अप्रकाशित (टंकित, पृष्ठ 371) www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use OnlyPage Navigation
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