Book Title: Prakrit Bhasha ka Tulnatmak Vyakaran
Author(s): K R Chandra
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 118
________________ अव्यय, परसर्ग एवं देश्य शब्द संस्कृत अधुना अध्यात्मम् अनन्तरम् अन् अन्तर् अन्यत्र अन्यथा अन्यदा अन्योन्यम् अपरेद्युः अपि अभीक्षणम् अयि अरे अरेरे अलम् अलंहि अवश्यम् असकृतम् अस्तु अस्तम् अहो Jain Education International प्राकृत अहुणा अज्झत्थं, अज्झप्पं अणंतरं अण अंतो अण्णत्थ, अन्नत्थ अण्णहा अण्णया अण्णमण्णं, अण्णोष्णं अन्नमन्नं, अन्नोन्नं अवरज्ज पि, वि, अवि अभिक्खणं अम्महे अम्मो अइ अरे अरेरे अलं अलाहि अवस्सं असई अत्थु अत्थं अहो अपभ्रंश एवहिं अण्णेत्त अण्णह, अन्नह इ, वि, मि, हि अव्वो, अव्वा अरि अरिरि, अररि आलेँ For Private & Personal Use Only अवसें, अवस, अवसि, अवसिं अवसय, अवसु, अवस्सु, अवस्सई १०१ अहु, उहु www.jainelibrary.org

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