Book Title: Prakrit Bhasha ka Tulnatmak Vyakaran
Author(s): K R Chandra
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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१०८
संस्कृत
यावन्मात्रम्
वरम्
वा
विना
वारम्वारम्
शनिकम्
शम्
शीघ्रम्
श्रेयस्
श्वस्
सकृत्
सदा
सद्यस्
समम्
सम्मुखम्
सम्यक्
सर्वतस्
सर्वत्र
सर्वथा
सर्वदा
सह
साक्षात्
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प्राकृत
वरि
व, व्व
वइ (पादपूर्ति)
विणा
वारंवारं
सणियं
सं
सिग्घं
सेयं
सुवे
सई, सइ
प्राकृत भाषाओं का तुलनात्मक व्याकरण
अपभ्रंश
जित्तिउ
सया, सइ
सज्ज, सज्जं, सज्जो
समं
संमुहं
सम्म
सव्वओ, सव्वतो, सव्वत्तो
सव्वत्थ
सव्वहा
सव्वया
सह
सक्खं
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वई (खेदार्थम्)
विणु, बिणु,
वार - वार, वलि - वलि
सणिउं
छुडु
सउँ
समुहुँ, समुह, सउहुँ
सव्वत्तउ
सव्वेत्तहे
सहुं, सहुँ, सहु
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