Book Title: Prakrit Bhasha ka Tulnatmak Vyakaran
Author(s): K R Chandra
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 136
________________ परिशिष्ट ११९ ब. प्राचीन श्वेताम्बर जैन आगम-ग्रंथ 'इसिभासियाई'* में से उद्धृत मूल अर्धमागधी की वह शब्दावली जो महाराष्ट्री प्राकृत के प्रभाव से वंचित रह गयी। क्- -- - अकामकारी अणुभासक अणेक अण्णायक अन्धकार पावकं पावकारि पुरेकडं फलविवाक बाहुक -क्-=-ग्परिव्वायग लोग वण्णाग भद्दक भावका वागरण विवाग सग (स्वक) सिलोग आकार भासक ममक आकुल आमक उप्पायक उलूक एकं एकगुणेन एकन्त एका कंडक कम्मकारी किंपाक गवेसक मूलक मूलाकं मूलसेक लोक वज्जक वणीमक विकप्प विपाक सत्थक सल्लकारी सव्वकम्म सव्वकाल साकडिअ सिलोक सुकर सोक -ग-=-गअणागत आगत उपागत उरग कामभोग जागर जोग जोगंधरायण जोगकण्णा णगर चेलक जालकं पडिकार पणायिका परलोक पवकारघर णाग पओग पयोग परलोग परिभोग For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144