Book Title: Prakrit Bhasha ka Tulnatmak Vyakaran
Author(s): K R Chandra
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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प्राकृत भाषाओं का तुलनात्मक व्याकरण (च्यु-क) चूकना, छइल (छेक-इल) चतुर, छेइल्ल (छेद-इल्ल) अन्तिम, जणेर (जन्-कर, यर) पिता, णंक (नास्-क) नाक, पक्कल (पक्वल) समर्थ, पत्तल (पत्र+ल) कृश, पेढाल (पीढ-आल) विस्तीर्ण, बोहित्थ (वह्-त्र, त्थ) नौका, महल्ल (महत्-ल्ल) वृद्ध, मोक्कल (मुक्त-ल) बन्धनमुक्त, विवरेर (विपरीतइर) विपरीत, विसंथुल (वि-संस्था-उल) शिथिल, विह्वल, संकडिल्ल (सङ्कटइल्ल) आकीर्ण, सुहिल्ल-सुहेल्लि (सुख-इल्ल) सुख (द) सादृश रचना वाले शब्द :
खद्ध (खा-द्ध; लभ्-लद्ध), गीढ (गिह-ग्रह; गुह-गूढ), डक्क (डस्; दंश-दष्ट), णावइ (ज्ञायते; सुव्वइ-श्रूयते), रामाणी (राम; इन्द्र-इन्द्राणी), लुक्क (लुक्, लुप्-लुप्त) । (क) संस्कृत कोषों एवं अन्य स्त्रोतों से उपलब्ध :
अक्खाड (अक्षपाट), इण (इन) सूर्य, कोट्ट (दुर्ग), खप्पर (खर्पर) भिक्षापात्र, जंगल (मांस), डिंभय (डिम्भ) शिशु, तोंड (तुंद) उदर, फड (फट) सर्पफणा, भम्म (भर्म) सुवर्ण, मयगल, (मदकल) हस्ति, मराल (हंस), रसोइ (रसवती), वरइत्त (वरयितृ) वर, हिंड (हिण्ड्), हीरो (हीरक) वज्र, रत्न (ii) ऐसे शब्द जिनकी परंपरा संस्कृत में नहीं रही परंतु अनुमान से
जिनके प्राचीन स्त्रोत का पता लगाया जा सकता है :
वेल्लरी (गणिका), बीली (तरंग), वेल्लि ( विल्लि, लता) वेल्ल, वल्लरी, वेल्ला (लता), वल्ली (केश), वेल्ल (आनन्द) : *विल्; णिहेलणः (भल्*निभेलन) गृह (iii) अनुरणनात्मक शब्द
कसमस, किलकिल, खणखण, गुमगुम, चलवल, जिगजिग, झरझर, टणटण, ढेक्कार, तडयड, थरहर, धगधग, फरफर, फुरफुर, बेबे, रणझण, रुणझुण, लललल, लिहिलिहि, सलसल, सिमिसिम, हिलिहिल, हूहूहु ।
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