Book Title: Prakrit Bhasha ka Tulnatmak Vyakaran
Author(s): K R Chandra
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 130
________________ अव्यय, परसर्ग एवं देश्य शब्द (iv) विदेशी शब्द (अ) द्राविडी अक्क (माता, भगिनी), अद्दअ (दर्पण), अम्मा (माता), अव्वो (हे मा), आरोग्गिअ (भुक्त), ओलग्ग (सेवा), उडिद (माष), कट्टारी (क्षुरिका), करड (व्याघ्र), कीर (शुक), कुंड (कुंभ), कोट्ट (नगर), कोत्थल ( थैला), खट्टिक (कसाई), खड्ड (खड्डा), खडक्की (खिडकी), गड्डी (गाडी), घट्ट (नदी का घाट), छाण (गोमय), झगड (झगड़ना), झडी (निरन्तर वृष्टि) झिंदु (कन्दुक), डोंबी (म्लेच्छ), णेसर (सूर्य), तट्टी (वृति), तलवर, तलार (कोतवाल), तुप्प (घी), थट्ट (समूह), दोर (कटि-सूत्र), पड्डी (नवप्रसूता महिषी), पुल्लि (व्याघ्र), पोट्ट (उदर), पोट्टलिगा (पोटली), फिड्ड (वामन), बोंदी (शरीर), मंगुस ( नकुल), माडिअ (गृह), मामामामी, मुद्दी ( चुम्बन), मेरा (मर्यादा), रद्धि (प्रधान), वट्टिय (पीसा हुआ), वड्ड (बड़ा), सरा (माला), सिंबीर (पलाल), हिड्ड (वामन), हुहुक्क (वाद्य - विशेष ) । (ब) फारसी शब्द अंगुट्ठय (अंगूठी), टिविला (वाद्यविशेष), दत्थर (हस्तशाटक), पीलु (हाथी), बंध (भृत्य) ( स ) आरबी करली, कराली (दन्तपवन) दतवन ११३ Jain Education International (v) शुद्ध देश्य शब्द अच्छोडन ( त्रोटन, आस्फालन), अम्माहीरअ (स्वापगीत ), अल्लिव (अर्पय्), अवरुंडण (आलिङ्गन), आयल्लय ( मदनपीडित), आढत्त (आरब्ध, आक्रान्त), आसंघ (आशंस्), उड्डिय (ऊर्ध्वकृत), उत्थर ( आक्रम्), उल्लोव (चन्द्रापक), ओहलिय (प्रक्षालित), कक्खड (कठोर), कण (बाण), कंदोट्ट (नीलोत्पल), किराड (वणिक), किलिविंडि ( करतल ध्वनि), कुंट (हस्तहीन), कुसुमाल (चोर), कुहणी (मार्ग), कोड्ड (कौतुक), कोणी (कूर्पर), खिच्च (खिचडी), खुट्टण (तोडन), खुप्प (मस्ज्), खेड (ग्राम), गणियारी ( हस्तिनी), गलत्थ (क्षिप्), गिल्ल (आर्द्र ), गोंदल (आनन्द, संग्रामध्वनि), गोस (प्रभात), गोह (योद्धा), घोट्ट (घूंट), चक्ख (आस्वाद्) चंग (चारु), चट्ट (छात्र), चड For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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