Book Title: Prakrit Bhasha ka Tulnatmak Vyakaran
Author(s): K R Chandra
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 131
________________ ११४ प्राकृत भाषाओं का तुलनात्मक व्याकरण (आरुह्) चंप (आक्रम्), चव (कथ्), चिक्खल (कर्दम), चिंच (मण्डय्), चोज्ज (आश्चर्य), छज्ज (राज्), छिव (स्पृश्), छोह अक्षिविक्षेप), जंपाण (शिबिका), टक्कर (आघात), डमर, डर (भय), डाल (शाखा), ढक्क (छादय्), ढंक (काक), ढल (पत् च्युत्), णिअ (पश्य्), णिड्डुरिय ( भयानक), णिहेलण (आलय), तलिम ( शय्या), तल्ल (क्षुद्र सर), दिक्करी (पुत्री), दुग्घोट्ट (गज), धण (भार्या), धाड (निर्धाटि), परियंद (आन्दोलय्), पाहुण (अतिथि), पोत्ति ( स्नानशाटि), फिट्ट (भ्रंश्), बप्प (पिता), बप्पीहय ( चातक), बाउल्लिय (पुतलिका), भेरुंड बुक्क (कथ्), बुड्ड (मस्जू), भंड ( कलह ), भसल (भ्रमर), भुल्ल (भ्रंश्), (एक पक्षी), मडप्फर ( मिथ्या गर्व ), मडंब (ग्राम), मडह (लघु), मढिअ ( खचित), मंडल (श्वान), मद्दल (मुरज), मरट्ट (दर्प), महमह ( सुगंधप्रसृ), मुसुमूर ( चूर्णय्), मेट्ठ, मेंठ, (हस्तिपक), राडि, रालि ( कलह ), रिंछ (शुक), रुंद ( विपुल), रेह (शोभ), लंजिया (दासी), लडह ( रम्य), लंपिक्क, लंपेक्ख (चोर), लुह (प्रमार्जय्), लूर (विदार), ल्हिक्क (नि+ली), वढ (मूर्ख), वंट (भाग), वंढ (अकृत - विवाह), वद्दल (मेघ), विट्टल (अपवित्र), विणड (वञ्च), विद्दाण (म्लान), वलया ( वनिता), विहलंघल (विह्वल), वुण्ण (भीत, त्रस्त ), वेयार (वञ्च) वेल्लहल (कोमल), वोल (गम्), संच (शरीरबन्ध), सालण (व्यंजन), हडहड (अत्यन्त), हड्डि (अस्थि), हलबोल (कोलाहल ), हल्लण ( चलन), हल्लरु (स्वापगीत ), हल्लोहल्ल (प्रक्षोभ), हित्थ ( त्रस्त), हीर (शिव) (vi) निम्न परंपरागत देश्य शब्दों को तद्भव की कोटि में रखा जा सकता है : अल्लिव (आलिप्-अल्लिप्-अल्लिव), आढत्त (आ+धा, आणत्त के समान), उड्डिय ( उत् + डी), उत्थर (उत् + सृ), किराड (कृ + अट्), खुट्टण (क्षुद्क्षुन्न), खुप्प (क्षुप् +य), चक्ख ( जक्ष), चिक्खल्ल (* चि+क्षाल्य ), छज्ज (छद्+य), ढक्क (*स्थक), ढंक (ध्वाङ्क्ष), णिड्डुरिय (नि+दर्), तलिम (तल्प), धण (धन्य), फिट्ट (स्फिट्टू), बुड्ड (ब्रुड्, व्रुड्), भसल (भस्), लुह (लुभ्), ल्हिक्क (श्लिक्न, श्लिष्), वुण्ण (व्रद् * वृद्) [ देखिए : पिशल एवं मोनियर विलियम्स ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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