Book Title: Prakrit Bhasha ka Tulnatmak Vyakaran
Author(s): K R Chandra
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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१०६
संस्कृत
नमस्
नापि
नास्ति
नितराम्
नित्यम्
नु
नैव
नो
परस्परम्
पश्चात्
पार्श्वे
पुनः
पुरतस्
पुरस्
पूर्वम्
प्रगे
प्रत्यक्षम्
प्रभूतम्
प्रायस्
प्रेत्य
बहिस्
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प्राकृत
नमो,
णवि
नत्थि
णमो
णिच्चं
णिरुत्त ( निश्चितम्)
प्राकृत भाषाओं का तुलनात्मक व्याकरण
अपभ्रंश
णु
णेव, णेअ, णेय
णो
परोप्परं, अवरोप्परं
अवरोवरं
पच्छा
पुणो, पुण, उण, पुणा
पुणाइ, पुणाई
पुरओ
पुरं, पुरे
पुव्वि, पुव्वि
पगे
पच्चक्खं
पभूयं
पाय
पेच्च
बाहि, बाहिं, बहिं,
बहिया, बाहिर
णइ, णउ, ण
णाहिँ नाहिँ णाहि
णिरारिउ, णिरु
णिच्चु
णिरुत्तउं, णिरु
हि, पहिँ, णवि
अवरोप्परु, अवरुप्परु
पच्छ, पच्छए, पच्छइ पासि, पासु, पासेहिँ
पुणु
घणउं
प्राउ, प्राइव, प्राइम्व, पग्गिम्व
बहि, बाहिरि, बाहिरउ,
बाहुडि, बाहेर
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