Book Title: Prakrit Bhasha ka Tulnatmak Vyakaran
Author(s): K R Chandra
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 116
________________ ८. अव्यय, परसर्ग एवं देश्य शब्द अ. अव्यय अव्यय उन शब्दों को कहते हैं जिनमें वचन एवं लिंग के कारण कोई परिवर्तन नहीं होता है । (i) अव्ययों में क्रियाविशेषण, संयोजक, विस्मयबोधक एवं पादपूर्ति करनेवाले शब्दों का समावेश होता हैं । (ii) कितने ही अव्यय ध्वनिगत परिवर्तन प्राप्त नहीं करने के कारण संस्कृत, पालि एवं प्राकृत में एक समान हैं । उनके थोड़े से उदाहरण ये हैं : : अतीव, अद्धा, अन्तो, अन्तरा, अलम्, इध, एव, कामम्, तम्, तेन, न, पुरे, मा, विना, समम्, सह, हा, हि, हैं, इत्यादि । (iii) कुछ ऐसे अव्यय भी हैं जो पालि और प्राकृत में ही मिलते हैं : ओरं (समीप इस पार), अङ्ग, अंग (हे ) इत्यादि । (iv) कुछ ऐसे अव्यय हैं जो केवल पालि में ही मिलते हैं परंतु प्राकृत में नहीं मिलते हैं :- अञ्ञदत्थु (निश्चयेन), अप्पेव (अप्येव), (इङ्ग), एकज्झं (एकधा), करह (कदा), कुहं (कुत्र), जे (स्त्रीसम्बोधने), तग्घ (निश्चयेन), तत्रसुदं (तत्र स्विद्), तथेरिव (तथैव), तहं (तत्र), पटिच्च (प्रतीत्य), पसव्ह (प्रसह्य), यथरिव (यथैव), सचे ( यदि), सेय्यथापि (तद् यथा), हवे (निश्चयम्), इत्यादि । (v) कुछ ऐसे भी हैं जो प्राकृत में मिलते हैं परंतु पालि में नहीं मिलते हैं :- हंजे (दास-दासी सम्बोधने), हंदि, हीमाणहे, ही - ही, हूं । (vi) अनेक ऐसे अव्यय हैं जो पालि और प्राकृत में समान रूप में या अल्प ध्वनिगत परिवर्तन लिए हुए मिलते हैं, जैसे (अ) पालिप्राकृत - अज्ज, अत्थ, किमु, चे, तत्थ, तर्हि, पगे, पेच्च, रिते, विय, सुवे, सं, हन्द, इत्यादि । पालिप्राकृत : अग्गतो अग्गओ, अचिरं- अरं, अञ्ञमञ्ञ - अन्नमन्नं, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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