Book Title: Prakarana Ratnakar Part 3
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 177
________________ सवासो गाथानुं स्तवन. १४५ करी व्यवहारक्रिया ते राजमार्ग बे. ए पाधरो मार्ग बांडीने जे बींकी ताके एटले ग ली गोचीनो रस्तो शोधवा जाय ते योग्य कहीए. जरत मरुदेव्यादिकनुं श्रालं बन सामान्ये न कर. नक्तंचः गिहिसंयत्त महत्तो ॥ इत्यादि ॥ ६२ ॥ आवश्यकमांदे नाषियोजी ॥ एहज अर्थ विचार ॥ फल संशय पण जाणतांजी ॥ जाणीजे संसार ॥ सो० ॥ ६३ ॥ व्याख्या - एहज अर्थनो विचार श्रावश्यकमांहे नाप्योबे के जे, जरतादिक खालं बन ले क्रियाने थापेबे, ते क्रिया अदृष्टव्य मुख्ये बे. क्रिया करतां फल होशे के नही होय ? ए संशय केम टले? ते उपर कहेते. जे फल संशय जायतां पण सं सार जालीए. वक्तंच श्री याचारांगे. संसयं परिजातो संसारे परित्ताते नवति संसयं परि जाणंतो संसारे परित्ताते नवति, इति कृष्णादौफलं संशयेपि यथो पायत्व निश्वयात् प्रवृत्तिस्तथा धर्मेपि इति न्यायानुसारिणः ॥ १ ॥ ६३ ॥ ढाल बवी मुनि मन सरोवर हंसलो अथवा कृषननो वंश रयणाय | ए देशी || प्रवर इस्यो नय सांजली || एक ग्रहे व्यवहारोरे ॥ मर्म विविध तस नवि लदे || शुद्ध अशुद्ध विचारोरे ॥ ६४ ॥ तुजविण गति नही जंतुने ॥ तुं जगजंतुनो दीवारे ॥ जीवी ० एतुज अवलंबने ॥ तुं साहेब चिरंजीवोरे ॥ तुज० ॥ ६५ ॥ व्याख्या - खवर के बीजो कोइ एक मतवादी पुरुष, एहवो व्यवहार स्थाप क नय सांजलीने एक व्यवहारनेज ग्रहे, पण तेहना विविध मर्म न पामे के, एक व्यवहार ने एक यशु-व्यवहार बे. ए वे नेद न प्रीछे ॥ ६४ ॥ हे गवंत ! तमाराविना जीवने गति नथी. तुं जगजंतुनो दीवो बे, तुज अवलंबने एटले ताहारी स्यादादवाणीने पदे जीवीए बैए. श्लाघ्यता जीवने वर्त्तेले. माटे तुं साहेब, अमारे माथे चिरंजीवी वर्त्तो ॥ ६५ ॥ बे जेहन आगम वारी ॥ दीसे शठ आचारोरे ॥ तेहज बुध बहु मानि ॥ शुद्ध कह्यो व्यवहारोरे ॥ तुज० ॥ ६६॥ व्याख्या - जेह श्रागम० सिद्धांतमांहे नथी वास्यो. खराव परिणामीनो श्राचार दीसे तेज बुधबहुके घणा पंमिते मान्यो. शुद्ध व्यवहार कह्यो नक्तंव ॥ मग्गो श्रागमलाई हवा संविग्गबहु जलाईन्नं ॥ उनयाणु सारिणीका सामग्गाणु सा 0 Jain Education International ९४ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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