Book Title: Prakarana Ratnakar Part 3
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 265
________________ नववैराग्यशतक. ७३३ घणुं वधारीए तो श्रीजिनधर्मर्नु पूर्ण फल शुं न पामीए? अपितु सर्व पामीए. ॥|| जह चिंतामणिरयणं सुलहं नदु दोश्तुब विदवाणं ॥ गुणविदव व शियाणं जियाणतह धम्म रयणंपिाजददिही संजोगो, नहो इजचंधयाण जीवाणं॥तह जिणमय संजोगो न दोशमिबंध जीवाणंएद व्याख्या-जह के जेम चिंतामणिरत्न, तुलविहवाणं के अल्पधनना धणीने मलवु सुनन नथी, तेम गुणविहववशियाणंके० समकितप्रमुख गुण रूप विनव जे संपदा तेणेकरी रहित एवा जीवोने धम्मरयणंपिके धर्मरत्न पामवो सुनन नथी. ॥ए॥जहके जेम, दिहीसंजोगोके नेत्रनो संजोग, जञ्चधयाणजीवाणंके जन्म थी अंध एवा जीवेने नहोइके नथाय, तह के० तेम, जिणमय के जिनेश्वरनो नाष्योजे धर्म, तथा तत्व विचार, तेनी प्राप्ति मिहंधजीवाणंके० मिथ्यातदर्शने मो हित एवा अंध जीवोने नहोइ के नथाय. ॥ ए६ ॥ पञ्चकमणं तगुणे जिणंद धम्मे न दोस लेसोवि॥ तदविदु अन्नाणं धा, नरमंति कयावितमि जियामिले अपंतदोसा, पयडा दी संति नविय गुण लेसोतनविय तंचेव जिया, दामोहंधानि सेवंतिएत व्याख्या-पञ्चकं के प्रत्यक्षपणे जिणंदधम्मेवणंतगुणा के श्रीजिनेश्वर नाधर्मनेविषे अनंता गुणले. न दोसलेसोवि के राग देषादिकदोषनो लेश पण नथी; तहविदु के० तोपण अन्नाएंधजिया के अज्ञाने करी जे बांधला जीवो ले तेउ, संमि के ते जिनेश्वरजाषित धर्मविषे कयाविमरमंति के कदापि काले प ण रमे नही एटले चित्तलगावे नहीं ॥ए॥ मिलेके मिथ्यातमतने विषे अणंतदो सा के० प्राणिहिंसादिक अनंतदोष, पयडादीसंति के प्रगटपणे देखाय डे, नवि यगुणलेसो के दया दमा प्रमुख गुणनो लवलेश न दीसे; तदविया के तोपण, जिया के जीव, तंचेवके ते मिथ्यामतनेज हा इति खेदकरीने गुरूकहे . मो हंधानिसेवंति के मोहेकरी धंध एवाजे प्राणी ते मिथ्यात्वने सेवे . ॥ ए७ ॥ घिद्धीताण नराणं विन्नाणे तदगुणेसु कुसलतं ॥सुदसच्च धम्मरयणे सुपरिकं जे नयाणंति ॥ए॥ जिणधम्मोय जिवाणं अपुवो क प्पपायवो ॥ सग्गापवग्गसुकाणं फलाणं दाइ गोश्मो॥१०॥ व्याख्या-धिनीकेण्धिक्कार पडो, धिक्कारपडो तारानराणंके० ते मनुष्योना विनाणे १०५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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