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शोजनकृतजिनस्तुति.
७७१ करो. ते पादयी केवी? तो के दलितपद्ममृः-दलित के० विकसित एवं जे पद्म के कमल-तेना सरखी मृड के० कोमल, अने उन्मुश्तामरसदामलतांतपात्रीउन्मुके० प्रफुल्लित एवां जे तामरस के कमलो-तेनी दाम के माला, अने लतांत के पुष्पो-तेजनी पात्री के नाजनरूप एवी, अथवा उन्मुश्तामरसदा अने थामलतांतपात्री एवां बे पद करवां-तेनो अर्थ एवोके विकसित एवी रेषा रूप कमलने रक्षण करनारी अथवा उन्मुत् के अत्यंत हर्षे करीने जे रत के० मैथुन, तेनो जे थाम के नवीन एवो रस-तेने खंमन करनारी एटले प्रणतज नोने कामवासना रहित करनारी, अने आम के रोग-तेज जाणे लता के व हनी-तेना अंतनी के विनाशनी पात्री के स्थान एवी, अने सतां के साधुज नोने वितीर्णमुत् के० समर्पण करी प्रीति जेणे एवी, अने मुस्तामरसत्-मुत् के हर्षे, रत के तत्पर थश्वे. अमर के देवोनी सत् के० सना जेनेविषे ए वी, अने आमलतांतपात्री के अत्यंत जे मलके पाप, तेणे करीने जे तांतके ग्लान-तेने पात्री के रक्षण करनारी एवी.॥१॥
सामेमतिं वितनुताजिनपंक्तिरस्त मुज्ञागताऽमर सनासुरमध्यगाऽद्यां ॥ रत्नांशुनिर्विदधती गग
नांतराल मुशागतामरसनासुरमध्यगायां ॥२॥ व्याख्या अस्तमुश-अस्त के० गयेलांचे मुज्ञ के प्रमाण जेथी, एटले प्रमाण रहित एवी सा के ते जिनपंक्तिः के जिननगवंतनी श्रेणी, मे के० मारी मति के बुधिने वितनुतात् के विस्तार करो. बायां के पूज्यपणाए करीने प्रथम एवी जे जिनपंक्तितेप्रत्ये, असुरमध्यगा के असुरोना मध्यनागे रहेनारी एटले शत्रुसाथे पण मुक्तवैर एवी अमरसना के देवोनी सना ते गगनांतराल के थाकाशना मध्यनागप्रत्ये, रत्नांशुनिः के रत्ननी कांतीए, उगतामरसनासु-उ ज्ञगके० उत्कृष्टले राताश जेउने, एवां जे तामरसके० धारक्तकमलो-तेणे करीने नासुरके दैदीप्यमान, एवांने विदधतीके० करनारी होती थकी गता के प्राप्त यती हवी. अने त्यारपडी, जे जिनश्रेणीने गणधरादिक अध्यगात् के थाश्रय करता हवा, ते मने बुझ्यिापो. एवो अर्थ. ॥ ॥
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