Book Title: Prakarana Ratnakar Part 3
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 218
________________ ១០៩ शोननकृतजिनस्तुति. णे करी रानित के शोजित-अने असमराजिनानीरदाः- असम के निरूप पमपणे राजि के शोनित नानि अने रद के० दंतजेना एवा, अने सकलना:कल के सुंदर एवीजे नाके० कांती, तेणेसहित, अथवा संपूर्णकांतीए युक्त ए वा, अने नीरदाः के नयनो नाश करनारा एवा ते जिनाः के तेतीर्थकर तेके तने नचितासुके० करवा माटे योग्य एवी यने रुचितासुके पंमितपुरूषोने मान्य, एवो क्रियासुके० धर्मानुष्ठान क्रियानेविषे-बायताः के विस्तृतएवी रती के सं तोषने क्रियासुः के० करो. ॥ २ ॥ सदायतिगुरोरदोनमतमानवैरंचितं ॥ मतंवरदमेन सारहितमायतानावतः॥ सदायतिगुरोरदोनमतमान वैरंचितं॥ मतंवरदमेनसारदितमायतानावतः ॥३॥ व्याख्याः- अहो के हेलोको, यतिगुरोः के० यतीना गुरू एवा अने आयता जावतः- बायत के विशाल एवी जे थाना के कांती, ते जेने एवा, गुरोःके० तीर्थकरना, मतंके सिद्धांतमतने तमे नावतः के नक्तिए करीने सदाके० निरंत र, नमत के० वंदन करो. ते मत केवुले? तोके-मानवैः के मनुष्योए,अंचितं के० पूजित,अने वरदंके बितवरने आपनारूं. अने एनसाके० पापे करीने रहित ए यु, अने रहः के रहस्यनूत, अने जेने मानके अनिमान अने वैरपण मान्यनथी एवं, अने पायता के वृक्षपामनारा एवा वरदमे के श्रेष्ठ एवा धात्मदमे करीने चितं के व्याप्त एवं, अने सारहितं के सर्वजनने अनिमत अने हितकारक एवं, अने सदायति-सत् के मोहोटीले आयति के प्रनुता जेथी एवं, अने मतं के सर्वजनने मान्य एबुंले. ॥ ३ ॥ प्रनाजितनुतामलपरमचापलारोहिणी॥ सुधावसुरनीमना मयिसनादमालेदितं ॥प्रनाजितनुताऽमलंपरमचापलाऽरो दिणी ॥ सुधावसुर नीमनामयिसनादामालेदितं ॥ ४ ॥ व्याख्याः -रोहिणी के रोहिणी नामे जे अधिष्ठायक देवी ते,अल के अत्यंत,परंके० नत्कृष्टपणे प्रनाजिके नजनशील, एवी, अने कमाले केकमावान एवी,ते मयिके० मारेविषे,अमलंके निर्मल अने हितंके हितकारक एवा इहितके वांडितने, तनुतां के विस्तारकरो.ते रोहिणीदेवी केवी ? तोके-अचापलाकेण्चपलपगाएरहित बने सुधावसुः-सुधा के चूनो! तेना सरखीने, वसुके कांती जेनी, अथवासुधाकेण्यमृत, % - me ---- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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