Book Title: Prakarana Ratnakar Part 3
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 232
________________ GOO शोननकृतजिनस्तुति. त्वमवनताजिनोत्तमकृतांतनवाधिषोऽ वसदनुमानसंग मनयाततमोदयितः ॥ शिवसुखसाधकंस्वनिदधत्सुधि यांचरणं वसदनुमानसंगमनयाततमोदयितः ॥ ३ ॥ व्याख्या-सत् के० उत्तम प्रकारनु जे अनुमान के प्रत्यक्ष १ अनुमान १ उपमान ३ बागम ४ ए चारप्रकारना अनुमान, तेनो ने संगमन के संगती जे ने एवा हे सदनुमान संगमन! अने यात के० गएवं , तम के अज्ञान जेनुं एवा जे यति, तेना दयित के वन्नन एवा हे याततमोदयितः ! अने गम के सरखा पागेना अलाप अने नय के नैगमादिक सातनय, ते ए करी आतत के विस्तृत एवा हे गमनयातत! अने मोद के आनंद उत्पन्न करना रा एवा हे मोदयितः! एवा हे जिनोत्तम कृतांत के० जिनश्रेष्टोना सिमांत! त्वं के तुं, सुधियां के पंमितोना अनुमानसं के मननो अंगीकार करीने वसत के वास करतो थको अने शिवसुख साधकं के मोद सुखनु साधक एवा चर पं के चारित्रने समनिदधत्के देखाडतो थको, अवनतान्के तमारामाटे थ त्यंतनम्र एवा विजुषः के० जिनमत जाणनारा पंमितीने नवात् के संसारथीथ व के रक्षण करो. ॥३॥ अधिगतगोधिकाकनकरुक्तवगोर्युचितां ॥ कमलकरा जितामरसनास्यतुलोपकृतं ॥मृगमदपत्रनंगतिलकैर्व दनंदधती॥ कमलकराजितामरसनास्यतुलोपकृतं॥४॥ व्याख्या-हे नव्यजन! गौरी के० गौरीनामे जे अधिष्ठायकदेवी, ते तव के ता रा लोपकतं के नाश करनारो जे शत्रु. तेने ते नयस्यतु के नाश करो. ते गौरी देवी केवी ? तो के-अधिगतगोधिका-अधिगत के० प्राप्त थश्वे, गोधिका के० दे ववाहन विशेष जेने एवी, अने कनकरुक के सोनासरखी ले कांती जेनी, थने कमलकरा के कमल ने दस्तनेविषे जेना एवी, अने जितामरसना-पोताना स्वरूपसौंदर्ये करीने जित के निष्प्रन करीने, अमरसना के देवोनी सना जे णे एवी, अने मृगमदपत्रनंगतिलकैः-मृगमद के कस्तूरि, तेनो जे पत्रनंगके पत्ररचना अर्थात पीअल, बने तिलक, एनए करीने उचितां के योग्य चि न्हो जेनेविषे एवी, अने अलकराजि के नकुटी अने वांकडा केश इत्यादिके करीने राजि के शोनायमान अने तामरसनासि-तामरस के कमल, तेना स Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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