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शोजनकृतजिनस्तुति.
G०१ रखी नास के कांति जेनी एवा, अने अतुलोपळतं के अतुव्यने उपकार के मौक्तिादिकोना अलंकार जेनेविषे, एवा वदनं के मुखने दधति के धार ण करनारी एवी. ॥ ४ ॥ इति श्रीमुनिसुव्रत जिनस्तुतिः संपूर्णा ॥ २० ॥ ७० ॥ अवतरण-हवे नमिनाथ जिननी स्तुति शिखरिणीवृत्ते करीने कहे.
स्फुरदिद्युत्कांतेप्रविकिरवितन्वंतिसततं ममायासंचारोदितम दनमेऽघानिलपितः ॥ नमभव्यश्रेणीनवनयनिदांत्यव
चसा ममायासंचारोदितमदनमेघानिलपितः ॥ १ ॥ व्याख्या-हे स्फुरदिद्यत्कांते के स्फूरण पामेले विजलिसरखी कांति जेनी एवा, यने हे चारो के हे मनोहर ? अने हे दितमद-दित के० दूर कस्या जे, मद के आठ मद जेणे एवा, अने हे अमायसंचार के नथी, मायानो एटले कपटनो संचार जेनेविषे, अथवा जेथी मायानो संचार नथी एवा, अने हे नमन्नव्य श्रेणीनवनयनिदाहृद्यवचसांप्रलपितः के नमन करनारा जे नव्यज नो, तेउनी जे श्रेणी, तेनो जे नवनय के संसारलय तेनु नेदन करनारा एवा हृद्य के मनोहर एवा वचसा के उपदेशरूप वचनने लपितः के नापण कर नारा, धने हेदितमदनमेघानिल-दित के प्रगट एवो जे, मदन के कामदेव, तेज जाणे मेघ, तेना नाशने माटे अनिल के वायुसरखा अने पितः के पि ता सरखा हे नमे के हे नमिनाथ तीर्थकर, वं के तुं, सततं के निरंतर आयासं के संसारचमणरूप धायासने वितन्वंति के विस्तार करनारां एवां म म के मारां अघानि के पापोने प्रविकिर के विखेरी नाख.॥१॥
नखांशुश्रेणीनिःकपिशितनमन्नाकिमुकुटः सदानोदीनाना मयमलमदारेरिततमः॥प्रचक्रेविश्वंयःसजयतिजिनाधीश
निवहः सदानोदीनानामयमलमदारेरिततमः ॥ २ ॥ व्याख्या-यः के जे जिनेश्वरसमूह. विश्व के जगतने इततमः के गयुं । अज्ञान जेनुं एवं करतो हवो; सोऽयं के० ते आ अत्यंत प्रख्यात एवो जिनाधी शनिवहः के जिनेश्वरदेवोनो समूह, जयति के० सर्वोत्कर्षे करीने वर्तणूक करे . ते केवो? तो के-नखांगुश्रेणीनिः के० पोताना नख किरणना समुदाये करीने कपिशितनमन्नाकिमुकुट:-कपिशित के कपिलवर्ण कस्यो ने, नामत के० नमन करनारा नाकि के देवताना मुकुट के किरीट जेणे एवो, अने' नानाऽम
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