Book Title: Prakarana Ratnakar Part 3
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 230
________________ एन शोननकृतजिनस्तुति. के कदंब नामक वृदनां फूल, कैरव के चंडविकासीकमल, अने शतपत्र के सो पारवडीनां कमल, एउनी जे संपत् के० संपदा जेनेविषे एवी स्त्र के मा लाने दधतः के धारण करनारा एवा जिनोत्तमान के अढीवीपसंबंधी संपूर्ण तीर्थकरोने स्तुत के स्तवन करो. ॥ ५ ॥ ससंपदंदिशतुजिनोत्तमागमः । शमावदन्नतनुतमोहरोदिते ॥ सचित्तनूःदतश्येनयस्तपः। शमावदन्नतनुतमोहरोदिते ॥३॥ व्याख्या-याके जे चित्तनःके कामदेव, ते तपःसमौके तप अने उपशम, एउने अहनके प्रहार करतो हवो, अर्थात नहिसरखा करतो हवो,अने अदितेके अखं मित एवा मोहरोदिते-मोहके मूढपणु अने रोदित के रुदन, एउने अतनुत के विस्तार करतो हवो; सः के ते कामदेव, इह के आ जगत्ने विषे येन के जे आगमे, छत के नष्ट कस्यो; बने जे तनुतमोहरः के महाअज्ञाननु ह रण करनार अने शंके सुखने आवहनके उत्पन्न करनार एवो सः के ते जि नोत्तमागमः-जिनके सामान्यकेवली, तेमध्ये जे उत्तम के तीर्थकर, तेनो आगम के सिहांत, ते संपदं के संपत्तिने, दिशतुके समर्पण करो. एटले जे का मदेवें तप अने नपशम-ए-नो नाश करीने निरंतर मोह अने शोक उत्पन्न कस्यो, ते मदननो नाश करनारो, अने अज्ञाननो नाश कर। सुख नत्पन्न करनारो एवो ते जिन सिद्धांत, अमोने मोसंपत्ति यापो. एवो नावार्थ ॥ ३ ॥ पिंगतोहृदिरमतांदमश्रिया प्रनातिमेचकितदरिदिपन्नगे ॥ वटादयेकृतवसतिश्चयहाराट् प्रनातिमेचकितहरिविपन्नग॥४॥ व्याख्या-यदराट के कपर्दिनामे जे यदोनोराजा, ते मेके मारा दमश्रि याप्रनाति के उपशमरूप लक्ष्मीए शोननारा एवा हदि के हृदयनेविषे रमतां के रमण करो. ते यदराज केवो ? तो के-चकितहरिपिं के पोतानी शोना, सामर्थ्य, स्थूलपणुं इत्यादिक गुणोए नयेकरोचकित कस्यो इंश्नो ऐरावत गज जेणे, एवा पिं के हस्तिप्रत्ये गतःके बारूढ थनारो अने विपन्नगेके ० सर्परहित एवा वटाव्हयेनगे के० वट नामक वृदना अधोनागे, कृतवसतिः के करेलु बे व स्तिस्थान जेणे एवो, अने प्रनातिमेचकितहरित-प्रना के कातिए अमेचकित के अतिशय श्यामवर्ण करीने हरितः के दिशाउजेणे एवो . ॥ ४ ॥ इति श्री मल्लिनायजिनस्तुतिः संपूर्णा ॥१९॥ श्लोक संख्या ॥ ७६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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