Book Title: Prakarana Ratnakar Part 3
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 227
________________ शोजनकृतजिनस्तुति. जाए। लक्ष्मी के नवनिधानादिक चक्रवर्तिनी संपत्तिने तृणमिव के तृणनी जेम, व्यमुं चत् के बोडतो हवो. हे नव्यजनो! तमे तं के ते अरं के० श्रीधरनाथ नामे जिनेश्वरने थानमत के नमस्कार करो. ते अरनाथ केवो जे? तोके-सन्नमदमर मानसंसार-सन्नके नाश पामेल डे, मद के बाठ मद, मर के० मरण, मान के अहंकार, अने संसार के जन्ममरणरूप संसार जेथी: एवो अने-तकल धौतकांतं-द्रुत के गालेखं एवं जे कलधौत के० सुवर्ण, तेना सरखो कांत के मनोहर, अने आनंदितनूरिनक्तिनाक्सन्नमदमरमानसं-आनंदित के० आनं द पमाडेला , नूरिनक्तिलाक के महोटी नक्ति सेवन करनारा एवा सन्नमत् के उत्तम प्रकारे करी नमस्कार करनारा, अमर के देव जेणे एवो, अने सारं के सारनूत एवो अने, अनेकपराजितामरं-अनेक के० घणा पराजित के० परा नव पमाडेला ने अमर के मागधतीर्थकुमार प्रमुख देव जेणे. एवो बे. ॥१॥ स्तौतिसमंततः समवसरणनूमौयंसुरावलिः॥ सकल कलाकलापकलिताऽपमदाऽरुणकरमपापदं ॥ तंजि नराजविसरमुशासितजन्मजरनमाम्यहं ॥ सकलक लाकलाऽ पकलितापमदारुणकरमपापदं ॥७॥ व्याख्या-सकलकलाकलापकलिता-सकल के संपूर्ण जे कलाउ, एटले ज्ञान कला, तेनो जे कलाप के समूह- तेणे करीने कलित के शोनित, एवी थ ने सकलकला के स्तुतिरूप कोलाहल शब्दे युक्त एवी अने, कला के मनोहर एवी सुरावलिः के चार निकाय देव, तेनी जे श्रेणी-यंके जे जिनसमूहने स मवसरणनमी के० समवसरणनमिनेविषे समंततः के चारे तरफ चार बा जुए स्ताति के स्तुति करे बे: तंके० ते अपमदारुणकरं-अप के० गया म द के आठ मद जेयी, अने अरुण के बारक्त , कर के हस्त जेना एवा, अने अपापदं-अपाप के पुण्य, तेने देनारा एवा, अने समुशासितजन्मजरं-स मुशासित के टाल्यां ने, जन्म अने जरा जेणे एवा, अने अपकलितापं-अप के० गयो दे. कलि के क्लेश बने ताप के संताप जेथी एवा, अने अदारुणक रं के नथी जे दारुण के जयंकर एवं जे कर्म, तेने करं के ० करनारा एवा, अ ने अपापदं-अप के गएली ने बापदा जेथी एवा. जिनराजविसरं के जिन श्रेष्टोना समूहने, अहं के दुं नमामि के नमस्कार करूं . ॥ २ ॥ ... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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