Book Title: Prakarana Ratnakar Part 3
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 215
________________ शोननकृतजिनस्तुति, उन्३ विषे आलीन के स्पर्श करने वालके केश जेना, एवी आनम्राके अत्यंतनम्र, एणे करीने नक्तिनुं आधिक्य सूचव्युंजे. अने नवा के नवीनज प्राप्तथयेलो चा रित्र धर्म जेने, एवी.॥ १ ॥ पूतोयपादपांसुः शिरसिसुरततेराचरचूर्णशोनां ॥ यातापत्राऽसमानाऽप्रतिमदमवतीदारताराजयंती॥ कीर्तेःकांत्याततिःसाप्रविकिरतुतरांजैनराजीरजस्ते॥ यातापत्रासमानाऽप्रतिमदमवतीदारताराजयंत॥२॥ व्याख्या-हेनव्यजन, इहके ण्याजगत्ने विषे पुतके पवित्र एवा, यत्पादपांसुःके जे जैनराजीनी पादरज, सुरततेः-सुर के देवताउनी जे तति के श्रेणी तेना सि रसि के० मस्तकनेविषे चूर्णशोना-चूर्ण के बुक्को, तेनी शोनाने आचरत् के याचरण करती हवी. अने या जैनराजी के जे जिनश्रेणी, तापत्रा के सर्व जन ने संतापथी रक्षण करनारी अने असमाना के० गुणे करीने जेना सरखं बीजें कोई नही एवी ! अने अप्रतिमदमवती के अनुपमडे, दम के नपशम जेनो, एवी अने कोःःके पोतानी कीर्तिनी कात्याके० कातिए हारतारा-हारके मौक्तिक हार अने ताराके नत्रमंमल-एउने जयंतीके जीतनारी, अने यातापत्रसमा ना-यातके ० गयां बापत्के० आपत्ति, त्रासके नय अने मानके अजिमान ए जेनां, एवी अने अप्रतिमदंके० गतमद एवा पुरुषोने,अवतीके रक्षण करनारीने थरताके रागरहित अने राजयंतीके शोनायुक्त एवी. साततिःके० ते जिन श्रेणी, तेके ताहरा, रजःके कर्मरूप रजने, प्रविकिरतु के अत्यंत विखेरी नाखो. नित्यंहेतूपपत्तिप्रतिहतकुमतप्रोतध्वांतबंधा ॥ ऽपा पायाऽसाद्यमानामदनतवसुधासारहृयादितानि ॥वा पीनिर्वाणमार्गप्रणयिपरिगतातीर्थनायक्रियान्म॥ऽपा पायासाद्यमानामदनतवसुधासारहवादितानि॥३॥ व्याख्या-मदन के० कंदर्प, तेणे करीने रहित एवा अमदन, अने अपापाया सादि के जेए पापे करी यायासादिक कस्यो नथी ते अपापायाप्लादि-अने जे मने मान नथी ते अमान, अने जेमने मद नथी ते अमद, एवा जे पुरुषो, ते ए नत के० वंदन करेता एवा हे अपापायासाद्यमानामदनत! अने वसुधा के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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