Book Title: Prakarana Ratnakar Part 3
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
996
शोभन कृत जिनस्तुति.
जिनेऽनंगै: प्रसनंगजीरा शुभारतीशस्यतमस्तवेन ॥ निर्ना शयंतीममशर्मदिश्यात् शुभारतीशस्यतमस्तवेन ॥ ३ ॥
व्याख्या - रतीशस्य के० कंदर्पना, इन के० स्वामिन्, एवा हे जिने ! के० हे जिनेश्वर ! तारी - नारती के० देशनारूप वाली ते, मम के० मने, शर्म के० सुख ने, दिश्यात् के० खापो. ते वाणी केवी बे ? तोके नंगेः के० अर्थ विकल्पे करी ने प्रसनं के० अत्यंत गनीरा के० गहन ने शस्यतमस्तवेन - शस्यतम के० य त्यंत श्लाघ्य, एवो जे स्तव के० स्तुति - तेणे करीने गुना के० उत्कृष्ट, घने या के ० ० शीघ्र, तमः के० खानने निर्नाशयंती के० नाश पमाडनारी एवी बे. ॥३ दिस्यात्तवाशुज्वलनायुधाल्प मध्यासिताकंप्रवरालकस्य ॥
शु
स्तेंरास्यस्यरुचोरुष्टष्ठ मध्यासिताकंप्रवरालकस्य ॥४॥
०
व्याख्या - हे नव्यजन ! तव के० तुं जे तेने, ज्वलनायुधा के० ज्वलनायुध ना मेधिष्ठायक देवी ते, कंके० सुखने-खानु के० शीघ्र, दिश्यात् के० श्रापो. ते ज्वलनायुध देवी केवी बे? तोके-सिता के० शुत्र, घने अल्पमध्या - अल्प के० सूक्ष्म बे, मध्य के कटी जेनो, एटले कृशोदरी, ने प्रवरालकस्य के० नृकुटी मस्तक संबंध वांका बे केश जेनेविषे, एवा यास्यस्य के० मुखनी रुचा के० कांती तेंडु के तिरस्कार करो ने चंद जेणे एवी, अने कंप्रवरालकस्य के० कं के० स्थिर जे वरालक नामे वाहन, तेना उरुष्पृष्टं के० विस्तीर्ण एवा पृष्ठभाग प्रत्ये यध्यासिता के यारूढ अनारी एवी बे ॥ ४ ॥ इति सुविधिजिनस्तुतिः अवतरण - हवे शीतलनाथनी स्तुति द्रुतविलंबित वृत्त करीने कहे बे. जयतिशीतलतीर्थकृतः सदा चलनतामरसंसदलंघनं ॥ नव aisiपथसंस्पृश चलनतामरसंसदलंघनं ॥ १ ॥
७
0
१०
व्याख्या - शीतलतीर्थकृतः के० शीतल नामे जे तीर्थंकर, तेनुं चजनतामलसं के० ० पदकमल ते, सदा के निरंतर जयति के० जय पामे बे. ते केवुं बे ? तो के, जे पथि के० मार्गने विषे संचार करतां बतां, अंबुरुहां के० सुवर्णकमलोना नवकं के० नवसंख्यारूप समुदायने संस्पृशत् के स्पर्श करनाएं. ते कमलनुं नव क के बे ? तोके - सदनं के० पत्रसहित घने घनं के० निविड, धने-चलनता मरसंसत् - चल के० चंचलपणाए नत के० नम्रः बे, श्रमरसंतत् के० देवोनी
U
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272