Book Title: Prakarana Ratnakar Part 3
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 200
________________ ७६ शोभनकृत जिनस्तुति. रहित, रोगरहित, धर्माचरणे मृत्युने चूकावनारा ने सर्वजनना हितकर्ता तमे ज बो; एवं सिद्ध थाय बे. एमाटे हुं नम्रताए एवी प्रार्थना करूंबुंके मारुं नपy दूर करो. एवो नावार्थ बे ॥ २ ॥ ज्ञा समतां मृतिजाय हिताययो जिनवरागमनो जव मायतं ॥ लघुतां नय निर्मथितो ह्यता जिनवरागमनोभवमाय तं ॥ ३ ॥ व्याख्या - हे निर्मथितोता जिनवरागमनोजवमाय - निर्मथितके० अत्यंत नि वारण करीबे मदो ताके० मढ़े उद्धत एवा पुरुषोसाथे व्याजिके० संग्राम नवराग के० इव्यादिको उपर थनारो जे अभिलाष ते, मनोजव के० कामदेव ने मायापण जेणे एवा अथवा त पुरुषोसाथ संग्राम करवामाटे जेने नवीन अभिलाषठे एवं जे मन - तेने विषे उत्पन्न नारी जे माया ते जेणे अत्यंत निर्मथन करीबे, एवा हे जिनवरागमके हे जिनश्रेष्ठा सिद्धांत, तुं सुमतांके० जेने प्राणबे एवा स यः जे संसार ते मृतिजाय हिताय के० मरण ने जन्मरूप कल्याण माटे थायले ते तंके० ते नःके० अमारा, खायतके० विस्तार पामेला एवा नवं के० संसारने प्रलघुतांके० प्रत्यंत लघुपणाप्रत्ये नयके० पमाड. एटले तुं पोताना साम निलाष, मदन, माया इत्यादिकोनुं निर्मथन करनार बे; एमाटे ते अ जिलाषादिको युक्त एवा अमारा संसारनो नाश करजे. एवो नावार्थ ॥ ३ ॥ ० Jain Education International ס D विशिषशंखजुषा धनुषा स्तसत्सुरनिया ततनुन्नम हारिणा ॥ परिगतां विशदा मिदरोहिणीं सुरनियाततनु न्नम हारिणा ॥४॥ व्याख्या- - हे नव्यजन, तुं इहके० या जगने विषे हरिणाके० मनोहर एवा यस्तस त्सुरनिया - यस्तके नष्ट करीबे सत्सुरके उत्तम देवोनी जीके० जीती जेणे एवा ने ततनुन्नमहारिणा के विस्तार पामेला एवा पोताना टणत्कार शब्दे क रीने पलायमान का महोटा शत्रु जेणे एवा घने विशिवशंषजुषा के० बा एने शंख एए सहित एवा धनुषाके० धनुष्ये करीने परिगतांके नूषितबे हस्त जेनो एवी ने सुरनियाततनुंके कामधेनु उपर बेसनारी मूर्ति जेनी एव ने विशदां वर्ण एवी रोहिणी के रोहिणीनामे अधिष्ठायक देवीने नमके० वंदन कर ॥ ४ ॥ इति जिनंदन जिनस्तुतिः संपूर्णा ॥ १६ ॥ अवतरण - हवे सुमतिनाथ जिननी स्तुति धार्यागीतिवृत्ते करीने कहे. ० ७ D For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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