Book Title: Prakarana Ratnakar Part 3
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 192
________________ ១០ शोननकृतजिनस्तुतिः ॥श्रीपरमात्मनेनमः॥ ॥ अथ श्रीशोननमुनिकृत चतुर्विशति जिनस्तुति बालावबोधसहित प्रारंनः॥ धनपाल पंमितनो शोनन नामे जे बंधु, तेणे रचेला प्रत्येक जिनना चार चार एवा चोवीस जिननी स्तुतिना बन्न श्लोक. मूल तथा तेनी व्याख्यासहित तेमांप्र थम युगादि जिननी स्तुती शार्दूलविक्रीडितवृत्ते करीने कहे. नव्यांनोजविबोधनैकतरणे, विस्तारि कर्मावली ॥रंना सामज नानि नंदन मदा, नष्टाप दा नासुरैः ॥ नक्त्यावंदितपादपद्म विषां, संपा दय प्रोधिता॥रंना साम जनानिनंदन महा नष्टापदा ना सुरैः ॥१॥ __ व्याख्या- हे नानिनंदन के० हेनानिराजाना पुत्र! तुं विरुषां के पंडितोने महान के० उत्साहने, संपादयके संपादन कर-तुं केवो? तो के नव्यके जव्य प्राणी, तेज जाणे अंनोज के कमल. तेन्ना विबोधने के प्रतिबोध करवा माटे एक के अदितीय एवो तरणे के० सूर्य. एवा हे जव्यांनोजविबोधनकतरणे! एटले सूर्य जेम पोताना किरणसमुदाये करीने अंधकारनो नाश करीने कमलोना समुदायने प्रफुलित करे: तेम नगवान तीर्थकर पण, मिथ्यात्वादिक अज्ञानस मुदायनो नाश करीने पोताना वचनसमुदाये करीने नव्यजंतूने माटे बोध करे ने. इहां एवी शंका थाय ने के, ते नगवान जो नव्यप्राणिने बोध करेने, अने बनव्योने बोध करता नथी, तो तेने अनव्यप्राणिउने बोध करवा माटे य सामर्थपषु प्राप्त थायजे. एनो उत्तर कहेले के, ते जगवंतने असामर्थपणु नथी. कारण, सर्व जगने प्रकाश करनारां एवां जे सूर्यनां किरण, ते मोके घुबड प दीउना समुदायनेविषे प्रकाश करनारां थयां नहीं, तथापि ते सर्व जगनेविषे नि दानुं अधिष्ठान थतां नथी; एवी सर्व जगने प्रेम उत्पन्न करनारी पण जगवंतनी वा णी, निविडकर्मशंखलाए प्रतिबद थएला एवा केटलाएक अनव्यपुरुषोने बो ध करवामाटे समर्थ घश्नहीं, तथापि ते तेनुं असमर्थपणुं समजवू नही; पण जे पुरुषने ते वाणी गमती नथी तेनुंज ते अनाग्य समजबुं जोइए. कारण, जलनी |वृष्टि करनारो मेघ, करखर देत्रनेविषे तृण उत्पन्न करवा माटे जो के असमर्थ डे, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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