Book Title: Pragnapanopangamsutram Part 01
Author(s): Malaygiri, 
Publisher: Agamoday Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 709
________________ कण्हलेसाण'मित्यादि, सुगम, नवरं लेश्याक्रमेण यथोत्तरं महर्द्धिकत्वं यथाऽर्वाक अल्पर्द्धिकत्वं भावनीयं, एवं ६ नरयिकतिर्यग्योनिकमनुष्यवैमानिकविषयाण्यपि सूत्राणि येषां यावत्यो लेश्यास्तेषां तावतीः परिभाब्य भावनी यानि ॥ इति श्रीमलयगिरिविरचितायां प्रज्ञापनाटीकायां लेश्यापदस्य द्वितीयोद्देशकः समाप्तः उक्तो द्वितीय उद्देशकः, सम्प्रति तृतीय-आरभ्यते, तस्य चेदमादिसूत्रम् नेरइए णं भंते ! नेरइएसु उववज्जइ अनेरइए नेरइएसु उववज्जइ ?, गो०, नेरइए नेरइएसु उववजइ नो अनेरइए नेरइएसु उववज्जइ, एवं जाव वेमाणियाणं । नेरइए णं भंते ! नेरइएहिंतो उववट्टइ अनेरइए नेरइएहिंतो उववद्दति ?, गो०1, अनेरइए नेरइएहिंतो उववदृति णो नेरइए नेरइएहिंतो उववट्टइ, एवं जाव वेमाणिए, नवरं जोइसियवेमाणिएसु चयणंति अभिलावो कायचो । से नूणं भंते ! कण्हलेसे नेरइए कण्हलेसेसु नेरइएसु उववजति कण्हलेसे उववइ, जल्लेसे उववाइ तल्लेसे उववइ ?, हंता गो०, कण्हलेसे नेरइए कण्हलेसेसु नेरइएसु उववजति कण्हलेसे उववट्टइ, जल्लेसे उववज्जइ तल्लेसे उववट्टइ, एवं नीललेस्सेवि, एवं काउलेस्से वि । एवं असुरकुमाराणवि जाव थणियकुमारा, नवरं लेस्सा अब्भहिया, से नूणं भंते ! कण्हलेसे पुढविकाइए कण्हलेसेसु पुढविकाइएमु उववज्जति कण्हलेसे उबट्टइ जल्लेसे उववजति तल्लेसे उववद्दति ?, eleseserceaeeseeeeeeeeeeee Jain Education international For Personal & Private Use Only aww.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752