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उक्त प्रसंग पर आचार्यश्री गंगा को 'जलहि' अर्थात् जलधि (सागर) की उपमा दी है। और उसे समग्र नदियों में विशाल महानदी बताया है। आगे की अनेक गाथाओं में तो विस्तृत रूप से गंगा की विशालता एवं भीषणता का वर्णन करते हुए अंतत: उसे मच्छ-कच्छ मगर आदि से युक्त तथा भीषण आवृत्तवाली भी कहा है। ___"रंगतमच्छकच्छवमयरोरग भीषणावत्तं।
पृष्ठ 178 नाविएण पगुणीकया नावा .... भयपि अरुहिऊणं ठिओ तीसे एगदेसे.. .पयट्टा महावेगेण गंतुं नावा...।
-वही, प्रस्ताव 5 यह वर्णन अतीव विस्तृत रूप से लिखा गया है। किन्तु लेख का कलेवर बढ़ जाने से यहाँ केवल संकेत रूप में ही कुछ उल्लेख किए हैं।
आचार्यश्री गुणचन्द्रसूरि ने जिस प्रकार गंगा नदी को नौका द्वारा पार करने का विस्तार से वर्णन किया है, उसी प्रकार विस्तार के साथ नौकारूढ होकर भगवान् महावीर द्वारा गण्डकी नदी पार करने का भी वर्णन किया है। गण्डकी नदी का वर्णन करते हुए उसे बहुत अधिक तरंगाकुल, महान् जलपूर से पूरित, अतीव दुर्वगाह तथा दुर्ग्राह्य एवं रणभूमि के समान दुस्तर बताया गया है। भगवान् महावीर जब गण्डकी नदी पार कर नौका से उतर कर चलने लगे, तब नाविकों ने मूल्य के लिए उन्हें पकड़ लिया और मध्याह्न सयम तक उन्हें रोके रखा। और सिद्धार्थ राजा के बाल-मित्र शंख नामक गणराजा के भगिनि पुत्र चित्र राजकुमार ने भगवान् को नाविकों से मुक्त कराया। वर्णन विस्तृत है। हम यहाँ केवल नौकारोहण का ही पाठ दे रहे हैं
"तं च सामी नावाए समुत्तिन्नो समाणो वेलुयापुलिणंसि मुल्लनिमित्तं धरिओ नाविगेहि।" श्री गुणचन्द्रसूरि, महावीर चरियं, प्रस्ताव 7 पृ. 224
गंगा और गण्डकी नदियों को नौका द्वारा पार करने का उक्त वर्णन ही आचार्य जिनदास महत्तर, आचार्य हेमचन्द्र तथा आचार्य शीलांक आदि ने भी अपने महावीर चरित्रों में अंकित किया है। बुद्धिमानों के लिए उपर्युक्त उल्लेख ही नौकारोहण की घटना को समझने के लिए पर्याप्त है, अधिक विस्तार की कोई अपेक्षा नहीं है।
प्रश्न है, क्या ये सब वर्णन कपोल-कल्पित हैं आचार्यों ने अपनी कल्पना
66 प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा - द्वितीय पुष्प
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