Book Title: Pragna se Dharm ki Samiksha Part 02
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

View full book text
Previous | Next

Page 196
________________ एक दार्शनिक एक गूढ़ रहस्य को सुलझाने में संलग्न था। जीवन-चर्या की हर क्रिया के साथ उसका मन-मस्तिष्क सत्य को सुलझाने में संलग्न रहता था। एक दिन प्रातः स्नान करने टब में बैठ गया। निर्वस्त्र स्नान कर रहा था। शरीर को मलते-मलते रहस्य की गुत्थी सुलझ गई, उसे सत्य का साक्षात्कार हो गया। फिर क्या था, वह एक दम उठा और उस प्राप्त सत्य के ऊपर पड़े हुए आवरण का उद्घाटन करने घर से निकल कर गलियों को पार करता हुआ बाजार में पहुँच गया-पा लिया, पा लिया.... पुकारता हुआ। लोग आश्चर्यचकित हो देखने लगे यह क्या? इतना बड़ा दार्शनिक और नंगा ही चला आ रहा, पगला गया है क्या? जब उसने उस रहस्य पर पड़े आवरण को हटाकर सत्य को सामने रखा, तब समझ में आया कि इसे सत्य को बताने की इतनी उत्कण्ठा थी कि उसे वस्त्र पहनने का भी ध्यान नहीं रहा। श्रमण महावीर भी अनन्त ज्योति के प्रज्वलित होते ही मुखरित हो गए। इस बात का कोई अर्थ नहीं रहा उनके सामने कि उनकी दिव्य देशना को कौन समझेगा? उन्हें यह सोचने की अपेक्षा ही नहीं रही वाणी रूप दिव्य-गंगा को धारण करने वाला शिव है या नहीं। वह ज्योतिर्मय तेजस्वी धारा प्रवहमान हो ही गई। उस ज्योति-पुरुष ने देखा, कि पावापुरी में एक विशाल यज्ञ का आयोजन हो रहा है। राजगुरु के पद पर प्रतिष्ठित वेदों के ज्ञाता विद्वान अपने विशाल शिष्य मण्डल के साथ यज्ञ के आयोजन में लगे हैं। हजारों मूक पशुओं की यज्ञ-वेदी पर आहुति दे दी जाएगी। आकाश धुएँ की कालिख से भर जाएगा और धरती निरपराध मूक पशुओं के खून से रंग जाएगी। चतुर्दश पूर्वधर श्रुतकेवली आचार्य भद्रबाहु लिखते हैं-इस महान् हिंसा को रोकने हेतु भगवान् महावीर संध्या वेला में ही वहाँ से चल पड़े पावापुरी के लिए। और वे सारी रात चलते रहे। प्रातः उनका समवसरण लगा पावापुरी के महासेन वन में। इधर श्री इन्द्रभूति गौतम आदि ग्यारह विद्वान अपने-अपने विशाल शिष्य मण्डल के साथ यज्ञ की तैयारी में लगे थे। उधर यज्ञ मण्डप के निकट महासेन वन में तीर्थंकर महावीर की दिव्य ध्वनि अनुगृजित हो उठी। वह श्रमण भगवान् महावीर की हिंसा जन्य यज्ञों के विरोध में अहिंसा की प्रथम देशना थी। यज्ञ के विरोध की सूचना यज्ञ-मण्डप तक भी पहुँची। इसे सुनकर इन्द्रभूति गौतम को मालूम पड़ा कि श्रमण भगवान् महावीर यज्ञ का विरोध कर रहे हैं। उसका सन्मति तीर्थ की स्थापना 181 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204