Book Title: Pragna se Dharm ki Samiksha Part 02
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 163
________________ निशीथ सूत्र में कहा है कि जो भिक्षु अपर्युषणा में पर्युषणा स्वयं करता है, दूसरों से करवाता है, अथवा अनुमोदन करता है उसे गुरु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है। इसी प्रकार जो पर्युषण के विहित काल में पर्युषणा स्वयं नहीं करता है, न दूसरों से करवाता है, और पर्युषण न करने वालों का अनुमोदन करता है, उसे गुरु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है। मूल-पाठ इस प्रकार है:जे भिक्खू अपज्जोसवणाएँ पज्जोसवेति, पज्जोसवेंतं वा सातिज्जति। -10 1 42 जे भिक्खू पज्जोसवणाए ण पज्जोसवेइ, ण पज्जोसर्वेतं वा सातिज्जति। ___-10 | 43 पर्युषण का उत्सर्ग काल आषाढ़ पूर्णिमा है। वर्षावास के योग्य शुद्ध क्षेत्र एवं मकान आदि मिल जाए तो आषाढ़ पूर्णिमा को ही पर्युषण करना चाहिए। यदि कभी ऐसा योग्य क्षेत्र एवं मकान आदि न मिले तो अन्ततोगत्वा अपवाद स्थिति में नौ महीने बीस रात्रि का विहारकाल पूर्ण करके भादवा सुदी पंचमी को तो पर्युषण कर ही लेना चाहिए।' इस से आगे नहीं जाना चाहिए। कल्प सूत्र के समाचारी प्रकरण में इसी लिए कहा है अन्तरा वि य से कप्पइ, नो से कप्पइ तं रयणिं उवाइणावित्तए- 9। 8 अब प्रश्न यह है कि जब आजकल आरंभ में आषाढ़ पूर्णिमा के दिन ही सिद्धान्तानुसार चातुर्मास के योग्य क्षेत्र मिल जाते हैं, उपाश्रय आदि के रूप में मकान भी पक्के, साफ-सुथरे व्यवस्थित प्राप्त हो जाते हैं, अन्य भी कोई कारण नहीं होता कि जिसके लिए अपवाद का सेवन किया जाए, तो व्यर्थ ही अपवाद सेवन का दोषाचरण क्यों किया जाता है? कारणवश अपवाद का सेवन करना पड़े, तो प्रायश्चित्त नहीं होता। परन्तु यदि कोई बिना कारण अपवाद का सेवन करता है तो वह प्रायश्चित का भागी होता है। उक्त विवेचन पर से स्पष्ट है कि आजकल सूत्रोक्त प्राचीन परंपरा के अनुसार आषाढ़ पूर्णिमा को पर्युषण न करके भादवा सुदी पंचमी को जो पर्युषण किया जाता है, वह न उत्सर्ग है, और न अपवाद है। साधना के दो ही मार्ग हैं-उत्सर्ग और अपवाद। दो के अतिरिक्त जो भी मार्ग हैं, वह मार्ग नहीं; उन्मार्ग है। पथ नहीं, कुपथ है। अतः उत्सर्ग और ___148 प्रजा से धर्म की समीक्षा - द्वितीय पष्प Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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