Book Title: Pragna se Dharm ki Samiksha Part 02
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 150
________________ मध्यम जिनपतीनां कारणसद्भावेऽपि दैवसिकरात्रिके एव प्रायः प्रतिक्रमणे, न तु पाक्षिक- चातुर्मासिक-सांवत्सरिकाणि । तथा चोक्तं सप्ततिशतस्थानकग्रन्थेः " देसिय-राइय-पक्खिय - चउमासिय- वच्छरीअ नामाउ । दुहं पण पडिक्कमणा, मज्झिमगाणं तु पढमा ।। - कल्प-सुबोधिका, व्या. 1 प्रतिक्रमणम् – श्री आदिनाथ महावीर साधुभिनिश्चियेन उभयकालं प्रतिक्रमणं कर्तव्यम् । 22 तीर्थंकरसाधुभिस्तु अतिचारे कारणे जाते प्रतिक्रमणं क्रियते, न जाते न क्रियते । कल्पसूत्र कल्पलता व्या. 1 5. एषां च पञ्चानां मेघानां क्रमेणेदं प्रयोजनसूत्रम् ...पञ्चमेघवर्षणानन्तरम्। 6. कप्पइ निग्गंथाण निग्गंथीणा वा..... सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा... 7. अथास्मिन् श्री पर्युषणापर्वणि साधूनां धर्मकृत्यानि" संवत्सरप्रतिक्रान्ति:, लुंचनं चाष्टमं तपः। सर्वार्हद्भक्तिपूजा च, संघस्य क्षामणाविधिः । । " - - जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति टीका, 2 वक्षस्कार कल्पलता व्या. 1 8. आज भी मूर्तिपूजक परंपरा में, भादवे के पर्युषण में भी, पाँच दिन ही कल्पसूत्र वाचने की प्रथा है। 9. श्री कालकाचार्य के उक्त सन्देश कथन पर से विनयविजयजी की वह बात स्वयं अप्रमाणित हो जाती है, जो उन्होंने वार्षिक पर्वरूप पर्युषण का सम्बन्ध आचार्य कालक से जोड़ा है 'तत्र वार्षिक पर्व भाद्रपद सित पञ्चम्यां, कालकसूरेरनन्तरं चतुर्थ्यामेवेति' -सुबोधिका, व्या. 1 10. भाद्रपद मासप्रतिबद्धपर्युषणकरणेऽपि नाधिकमासः प्रमाणमिति त्यज कदाग्रहम्। -सुबोधिका, व्या. 9 11. पंचपंचकवृद्धया गृहिज्ञातादिविस्तरस्तु नात्र लिखितः, सांप्रत संघाज्ञया तस्य विधेर्व्युच्छिन्नत्वाद् । Jain Education International सुबोधिका व्या. 1 12. तं पुण्णिमाए पंचमीए, दसमीए, एवमादिपव्वेसु पज्जोसवेयव्वं, णो अपव्वेसु । सीसो पुच्छति इयाणिं कहं चउत्थीए अपव्वे पज्जोसविज्जति ? आयरियो भणति - कारणिया च चउत्थी अज्जकालगायरिएण पवत्तिया । - निशीथ चूर्णि, दशम उद्देशक पर्युषण : एक ऐतिहासिक समीक्षा 135 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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