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ध्वनिवर्धक का प्रश्न कहाँ उलझा है ?
ध्वनिवर्धक के यंत्र से को आपत्ति नहीं है। आपत्ति है उसमें प्रयुक्त होने वाली विद्युत् से। विद्युत् क्या है, यह तो ठीक तरह वैज्ञानिकों से मालूम किया नहीं। और कुछ पुराने वचनों से और कुछ अपनी कल्पित धारणाओं से विद्युत् को अग्नि समझ लिया, वह भी सचित्त अर्थात् सजीव ! और प्रश्न उलझ गया कि सचित्त अग्नि का उपयोग कैसे किया जाए ? इधर-उधर से ऊपर के कितने ही समाधान करें, पर मूल प्रश्न अटका ही रहता है। वैसे तो मार्ग में आये सचित्त नदीजल को पैरों से पार कर सकते हैं, गहरा पानी हो तो नौका से पार कर सकते हैं। जल के असंख्य जीव हैं, फिर अग्नि को छोड़कर अन्य सब काया के जीव हैं, अनन्त - निगोद जीव हैं, पंचेन्द्रिय त्रस प्राणी तक हैं। यह सब अपवाद के नाम पर हो सकता है। । परन्तु ध्वनिवर्धक का अपवाद नहीं। विद्युत् की अग्नि जरूरत से ज्यादा परेशान कर रही है । मैं इसी परेशानी पर विचार कर रहा हूँ । विद्युत् क्या है, इसी पर कुछ प्रकाश डालना है आज।
विद्युत् : अतीत की नजरों में
प्राचीन से प्राचीन भारतीय साहित्य अध्ययन की आँखों से गुजरा है। वेद, उपनिषद् और पुराण | जैन आगम और त्रिपिटक । कहीं पर भी धरती पर की इस विद्युत् का जिक्र नहीं है। धरती पर यह आविष्कार तब हुआ ही नहीं था, जिक्र होता भी कैसे ? प्राचीन काल के लोगों को आकाशगत वायुमंडल की विद्युत् का ही ज्ञान था और वे उसे एक दैवी प्रकोप समझते थे। मेघ को देव एवं इन्द्र कहते थे, और बिजली को उसका वज्र । आकस्मिक विपत्ति के लिए अनभ्र वज्रपात की जो उक्ति प्रचलित है, वह इसी वज्र की धारणा पर आधारित है। पुराणों में विद्युत् को देवी माना गया है। आजकल भी कुछ आदिवासी जैसे अविकसित या ग्रामीण मनुष्य ऐसे हैं, जो इसे दैवी प्रकोप ही समझते हैं। और बहुत से तो बड़ी रोचक कहानियाँ आकाशीय विद्युत् के विषय में बतलाते हैं। मैंने स्वयं देखा है, जब बिजली कड़कती है तो भोले ग्रामीण अपने इष्टदेव का नाम लेते हैं और रक्षा के लिए दुहाई देते हैं। ये सब बातें सिद्ध करती है कि पुराने युग में मनुष्यों को बादलों की बिजली का ही ज्ञान था और उसके सम्बन्ध में उनकी विचित्र कल्पनाएँ थीं। उन्हीं कल्पनाओं में यह भी एक कल्पना थी कि बिजली अग्नि है। जल उसका ईंधन है, और वह बादलों की आपस की टकराहट
• 94 प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा - द्वितीय पुष्प
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