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प्रपंच समाज में चर्चा का विषय बन गया है, इसका उचित निराकरण करेंगे। प्रवचन सभा में हजारों की भीड़ हो जाती है, सुनाई कुछ देता नहीं है। शोरोगुल होता है, आकुलता बढ़ती है, जनता के मन खिन्न हो जाते हैं। यह कितनी बड़ी मानसिक हिंसा है। प्रस्तुत प्रसंग में इस पर भी विचार करना आवश्यक है।
संदर्भ :
अब से 35 वर्ष पहले अजमेर सम्मेलन के अवसर पर पालनपुर के श्री जीवाभाई ने अपनी 'नयन पच्चीसी' में यों लिखा था।
'तमारा पातरा माटे कपाये रोहिडा लीला।
शुं छोडी माटीनां लीधा, जरा खोली नयन जोशो । '
कुछ मुनिराज बचाव करते हैं कि हम तो दीक्षा पर आए पात्र लेते है, अपने निमित्त से लाये गये नहीं। मैं पूछता हूँ, दीक्षार्थी के लिए तो तीन पात्र ही चाहिए। ये पात्रों
की जोड़ पर जोड़ किसलिए आती है? आपको बहराने के लिए ही तो ।
3.
(क) दशवै 7/52 (ख) परित्रिगर्तेम्यो वृष्टो देवः - वोपदेव ।
4.
अबिन्धनं दिव्यं विद्युदादि - तर्क संग्रह |
5.
देखिए, आधुनिक रसायन विज्ञान पृ. 280
6. उपर्युक्त विवेचन के लिए देखिए, 'भौतिक विज्ञान का सरल अध्ययन' पृ. 191-921
7.
उक्त विवेचन आगरा कालेज के फिजिक्स प्रोफेसर श्री एच. पी. शर्मा द्वारा लिखित 'सरल भौतिक विज्ञान' नाम पुस्तक के चतुर्थ संशोधित संस्करण के आधार पर है। 8. देखिए, आधुनिक रसायन विज्ञान - पृ. 145
1.
2.
9.
अग्नि कुमारा देवा.... अगणिकायं विउव्वंति - जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति ।
10. प्रज्ञापना 2/177
11. परकायशस्त्रमुदकादि - आचा. न. 124 शीलांक वृत्ति ।
12. दीर्घलोको वनस्पतिरित्यर्थः, अस्य च शस्त्रमग्निः । आचा. शीलांक टीका 1/1
13. काष्ठानि वह्नेः कणः
भोजसागरीय पार्श्वस्तोत्र |
14. न विणा वाउयाएणं अनगणिकाए उज्जलइ - भग. 16/2/561
15. अंतो मणुस्सखेते अड्ढाईज्जेसु दीवसमुद्देसु ।
प्रज्ञापना 2/154
16. उक्कासहस्साइं विणिमुंचमाणं, जालासहस्साइं पंमुचमाणं । - भगवती 3/2/143 17. हुयासणे जलंतंमि उत्तरा
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ध्वनिवर्धक का प्रश्न हल क्यों नहीं होता? क्या विद्युत अग्नि है ? 105
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