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प्रायश्चित्त चर्चा
नदी-संतरण के लिए प्रायश्चित्त की भी एक चर्चा है सम्प्रदाय भेद से इसके लिए अनेक प्रकार के छोटे-बड़े प्रायश्चित लिए जाते है। किन्तु, वस्तुतः नदी-संतरण का कोई प्रायश्त्ति होता है क्या? यदि होता है, तो वह कौन-सा?
महान-शास्त्र-मर्मज्ञ आचार्य श्री जवाहरलालजी महाराज आदि अनेक मनीषी मुनि अपवाद का कोई प्रायश्चित्त नहीं मानते थे। जैनागम रत्नाकर आचार्य श्री आत्मारामजी महाराज को भी नौका द्वारा नदी पार करने का प्रायश्चित्त स्वीकृत नहीं था। उनके द्वारा व्याख्यायित आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध तृतीय अध्ययन उद्देशक एक के टिप्पण में लिखा है-"नदी में पानी की अधिकता हो तो मुनि नौका द्वारा उसे पार कर सकता है। यह अपवाद मार्ग उत्सर्ग की भाँति संयम में सहायक एवं निर्दोष माना गया है। क्योंकि आगम में इसके लिए प्रायश्चित्त का कहीं भी विधान नहीं किया गया है।" आचार्य चरणों की उक्त बात असंगत नहीं है। प्राचीन काल से ही उत्सर्ग और अपवाद दोनों को मार्ग ही माना गया है। यह नहीं कि उत्सर्ग मार्ग है और अपवाद अपमार्ग या कुमार्ग है। दोनों ही अपने-अपने स्थान पर श्रेयस्कर एवं शक्तिशाली है। निर्बल कोई भी नहीं है। प्रस्तुत प्रतिपाद्य के लिए देखिए सुप्रसिद्ध बृहत्-कल्प का भाष्य तथा महान् व्याख्याकार श्रुतधर आचार्य मलयगिरि की व्याख्या।
अविधि को आशंका के परिहार के लिए नौका आदि द्वारा नदी पार करने पर 'इरिया पथिक' कायोत्सर्ग का ही विधान है। दृष्टव्य है, निशीथसूत्र के त्रयोदश उद्देशक का भाष्य
"णावाए -उत्तिण्णो, इरियापहिताए कुणति उस्सग्गं"।।4256।।
पूर्व लेख में भगवान् महावीर द्वारा गंगा नदी पार करने का उल्लेख है। आवश्यक नियुक्ति गाथा 471 की व्याख्या में आचार्य मलयगिरि ने चूर्णि निर्दिष्ट पाठ उद्धृत किया है, जिसका भावार्थ है।" गंगा नदी पार करने के बाद तट पर 'इरियापथिक' प्रतिक्रमण किया और आगे प्रस्थान कर गए।"
'ततो भयवं दगतीराए इरियावहियं पडिक्कमिउं पत्थिओ।'
आचार्य नेमिचन्द्र ने अपने 'महावीर चरियं' में भी ऐसा ही उल्लेख किया है
भगवान् महावीर द्वारा महानदियों का संतरण 73
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