Book Title: Prachin Jainpad Shatak
Author(s): Jinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya
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( ७ ) पियारा ॥चन्द०॥ टेक ॥ सुरपति नरपति फनिपति सेवत, मानि महा उत्तम उपगारा । मुनिजन ध्यान धरत उरमाहीं, चिदानंद पदवीका धारा । चन्द। ॥१॥ चरन शरन बुधजन जे आये, तिन पाया अपना पद सारा। मंगलकारी भवदुखहारी,स्वामी अद्भुत उपमावारा ॥ चन्द.॥ । १३ राग-अलहिया बिलावल-ताल धीमा तेताला। ___ करम देत दुख जोर, हो साइयां ॥ करम० ॥ टेक ॥ कैइ परावृत पूरन कीने, संग न छाँड़त मोर, हो साइयां ॥ करम० ॥ १॥ इनके वशतें मोहि बचावो, महिमा सुनि अति तोर हो साइयां ॥ करम० ॥ २॥ बुधजनकी बिनती तुमहीसौं, तुमसा प्रभु नहिं और हो साइयां ॥ करम० ॥३॥
१४ राग-सारंग। तन देखा अथिर घिनावना ॥ तन०॥ टेक॥ बाहर चाम चमक दिखलावै, माहीं मैल अपावना। बालक ज्वान बुढ़ापा:मरना, रोगशोक उपजावना ॥ तन०॥ १॥ अलख अमूरति नित्य निरंजन, एकरूप निज जानना । वरन फरस रस गंध न जाकै, पुन्य पाप विन मानना ॥ तन० ॥२॥

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