Book Title: Prachin Jainpad Shatak
Author(s): Jinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya
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( ६ )
१० राग-ललित तितालो ।
हो जिनवानी जू, तुम मोकौं तारोगी ॥ हो० ॥ टेक ॥ आदि अनन्त अविरुद्ध वचनतै, संशय भ्रम निरवारोगी || हो० ॥ १ ॥ ज्यों प्रतिपालत गाय बत्सकौं, त्यों ही मुझको पारोगी । सनमुख काल बाघ जब आवै, तब तत्काल उवारोगी ॥ हो० ॥ २ ॥ बुधजन दास वीनवै माता, या विनती उर धारोगी । उलभि रह्यौ हूं मोहजाल में, ताक तुम सुरभावोगी हो० ॥ ३ ॥
११ राग - विलावल कनड़ी ।
मनकेँ, हरष अपार -- चितकै हरष अपार वानी सुनि ॥ टेक ॥ ज्यौ तिरषातुर अम्रत पीवत, चातक अंबुद धार ॥ वानी सुनि० ॥ १ ॥ मिथ्या तिमिर गयो ततखिन हो, संशयभरम निवार । तत्त्वारथ अपने उर दरस्यौ, जानि लियो निज सार ॥ वानी सुनि० ॥ २ ॥ इन्द नरिंद फरिंद पदीधर, दीसत रंक लगार । ऐसा आनंद बुधजन उर, उपज्यौ अपरंपार ॥ वानी सुनि० ॥ ३ ॥
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१२ राग- अलहिया
चन्दजिनेसुर नाथ हमारा; महासेनसुत लागत

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