Book Title: Paumchariu Part 2
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 266
________________ कं.४, ७-११,९,१-०) सुन्दरकण्डं-एकूणपण्णासमो संघि [२२५ सुललिय-पुट्टिएँ सिङ्गारियाएँ पिण्डत्थणियऍ एलउँरियाएँ ॥७ वच्छयले मज्झिमएसएण भुअ-सिहरेंहिँ पच्छिम-देसएण ॥८ वारमई-केरेंहिँ वाहुलेहिँ सिन्धव-मणिवन्धहिँ वट्टलेहिँ ॥ ९ माणुग्गीवऍ कच्छायणेण उउ. गोग्गडियह तणेण ॥ १० दसणावलियऍ कृण्णाडियएँ जीहऍ कारोहण-वाढियएँ ॥११ । णासउडेंहिँ तुङ्ग-विसय-तणेहिँ , गम्भीरएहिँ वर-लोयणेहिँ ॥ १२ भउहा-जुएण उजेणएण भालेण वि चित्ताऊँडएण ॥ १३ कासिऍहिँ कवोलेंहिँ पुजएहिँ कण्णेहि मि कण्णाउजएहिँ ॥ १४ काओलिहिँ केस-विसेसएण विणएण वि दाहिणएसएण ॥ १५ ॥ घत्ता ॥ अह किं वहुणा वित्थरण अ-णिविण्णण सुन्दर-मइण । एकेक्कउँ वत्थु लएप्पिणु णावइ घडिय पयावइण ॥ १६ [९] राम-विओएं दुम्मणिय अंसु-जलोल्लिय-लोयणिय । मोकल-केस कवोल-भुअ दिट्ठ 'विसण्ठुल जणय-सुअ॥ १ 15 जाणइ-वयण-कमलु अलहन्तिउ सुह ण देन्ति फुल्लन्धुय-पन्तिउ ॥२ हणइ तो वि ण करन्ति णिवारिउ कर-कमलहिँ लग्गन्ति णिरारिउ ॥३ एवं सिलीमुह-सासिजन्ती अण्णु विओअ-सोय-संतत्ती ॥४। वणे अच्छन्ति दिव परमेसरि सेस-सरीहिँ मज्झें णं सुर-सरि ॥५ हरिसिउ अञ्जणेउ एत्थन्तर 'धणउ एकु रामु भुवणन्तरें ॥ ६ ॥ जो तिय एह आसि माणन्तउ रावणु सइँ जे मरद अलहन्तउ ॥७ णिरलङ्कार वि होन्ती सोहइ जइ मण्डिय तो तिहुअणु मोहई' ॥ ८ 'सीयहे तणंउ रूउ वण्णेप्पिणु अप्पउ णहें पच्छण्णु करेप्पिणु ॥९ ॥ घत्ता॥ जो पेसिउं राहवचन्दंण सो पत्तिउ अङ्गुत्थलउ । उच्छङ्गे पडिउ वइदेहिहें णावइ हरिसहाँ पोट्टलउ ॥ १० 11 P सिगारियाए, 8 सिवारियाए. 12 P पिंडथणिभए, s पिंडत्थणिए, A पिंडत्थणीयए.. 13 Ps एलउलियाए, A एलउरियए. 14 P भुअसिहरें, 3 भुयसिहरें. 15 A दहिणएसएणं. 16 PS वाहुलेहि, A वाहुलिहिं. 17 P माणग्गीवेहिं कच्छाणुणेहिं, s माणग्गीविहि कच्छाणुणेहिं. 18 P उट्ठउडेहि, s उट्ठउणिहि. 19 P कोकणियहिं तणेहिं; s कोकणियहि तणेहि. 20 PS कोरोहणवाडियए. 21 s णासउडिहि, Pणासउडें. 22 PS चित्तउडाणएण. 23 PSA कासीएहिं. 24 P काविलेंहिं. काविलिंहि. 25 PS अण्णिचिइण्णे. 26 PS एक्केकी. 9. 1 P णिवारिउं. 2PS करयलेहि. 3 P णिरारिलं, A निवारिउ. 4 P एवं. 5s सासिजती, A सासीजंती. 6 A धण्णउं. 7 P जु, S जि. 8 P सीयहो, S सीयहि. 9 A तणउं. 10 P अंगुत्थलउं. [९] १ भमच्छाल मारहीनेति. २ भ्रमराः. स०प०च०२९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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