Book Title: Paumchariu Part 2
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 306
________________ हि क०३, ६-१०,४, १-१०,५,१] सुन्दरकण्ड-चउचण्णासमो संधि [२६५ पञ्चाणणु मेल्लेवि धरिउ गउ जिणु मुऍवि पसंसिउ पर-समउ ॥ ६ जो जसु भायणु सो तं धरइ कइ णालियरेण काइँ करइ ॥ ७ जो सयल-काल सुपहुत्तऍहिँ मणि-कडय-मउड-कडिसुत्तऍहिँ ॥ ८ पुर्जिजहि सो एवहिँ धरित लंम्पिक्कु जेम जण-परियरिउ ॥ ९ ॥ घत्ता ॥ म. मुऍवि सु-सामि मारुइ कियइँ जाइँ छलइँ। इह-लोएँ जै ताइँ पत्तु कु-सामि-सेव-फलइँ ॥ १० [४] 'रावण सुहु भुञ्जन्ताह लङ्काउरि जिह णारि । आणिय सीय ण एह पइँ णिय-कुल-वंसहाँ मारि' ॥१ अण्णु मि जो दुग्गइ-गामिऍहिँ कुकलत्त-कुमन्ति-कुसामिऍहिँ ॥२ कुपरियण-कुमन्ति-कुसेवऍहिँ कुतित्थ-कुधम्म-कुदेवऍहिँ ॥ ३ आएहिँ असेसहिँ भावियउ सो कवणु ण आवइ पावियउ' ॥ ४ तं वयणु सुणेवि कइद्धऍण णिभैच्छिउ 'वेहाविद्धऍण ॥ ५ 'किर काइँ दसाणण हसहि मइँ अप्पणु सलग्घु किउ काइँ पइँ ॥ ६ ॥ परदारु होइ चिलिसावर्णउ णाणाविह-भय-दरिसावणउ ॥७ दुक्खहुँ पोट्टलु कुल-लञ्छणउ इहलोय-परत्त-विणीसणउ ॥८ दुजण-धिक्कार-पडिच्छणउ घरु अयसहों जम्मों लञ्छणउ ॥ ९ ॥ घत्ता॥ .संसारहों वारु दिदु कवाडु सासय-घरहों। 20 लङ्कहें वि विणासु अकुसलु अण्ण-भवन्तरहीं ॥ १० [५] 'जोंबणु जीविउ धणिय घरु सम्पय-रिद्धि णरिन्द । भावेवि एह अणिच्च तुहुँ पट्टवि सीय णिसिन्द ॥ १ 6P S A काइ. 7 PS पुजिजइ. 8 P जणे, s जणि. 4. 1 P. S. read this stanza in the beginning of the 16. Kadavaka; A. reads it in the beginning of the 5. Kadavaka. 2 P s वि. 3 Ps मिच्छत्त'. 4 P भणु. 5 P S"णिब्भंच्छिउ, A निभच्छिउ. 6 P S अप्पउ. 7 P चिलिसावणउं, s चिलसावणउ. 8 " S A "दरिसावणउं. 9 A लंछणउं. 10 P A °विणासणउं. 11 A °पडिच्छणउं. 5. 1 Ps prefix. दोहा॥. 2 S A धणु. 3 A. omits this half. 4 PS तुह. [३] १ सुप्रभुत्वैः मुणैः. २ तस्त(स)कर इव. [४] १ कोपाविष्टेन.. ". स. प. च. ३४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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