Book Title: Paumchariu Part 2
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 316
________________ क०४, ६५, १–९, ६, १-५ ] गिरिवर उर्वरि विहङ्गमु जन्तर एम भणेवि णिवारिउ रावणु तावेत .वि तेण हणुवन्तें चिन्तिर ऐकु खणन्तरु धाऍवि 'लक्खण-रामहुँ कित्ति दहमुँह-जीविड जेम चिन्तिऊण सुन्दरेण सुन्दरं स- सिहरं स मूलं समुक्खयं स- कुसुमं स वारं स - तोरणं मणि- तवङ्ग - सबङ्ग-सुन्दरं हीर- गहण - तल- उब्भ- खम्भयं विष्फुरन्त - णीसेस - मणिमयं इन्दणील-वेरुलिय- णिम्मलं वर-पवाल-माला - पलम्विरं न्त घरु पवर-भुएहिँ हव-वियाइँ तहाँ सरिसाइँ जाइँ अणुलग्गहूँ किउ कडमणु, पवणाणन्दें पुणु विस- इच्छऍ परिसक्कतें सहइ समीरण हयले जन्तउ तुहिँ अवसरें सुरवर - पञ्चाणणु सुन्दरकण्डं - पञ्चवण्णासमो संधि [ [ २७५ तो किं सो जें होइ वलवतंड' ॥ ५ सण्णज्झन्तु भुवण-संतावणु ॥ ६ पाइँ विह हयले जन्तें ॥ ७ कोव - दवग्ग मुहुत्तप्पाऍवि ॥ ८ [४] १• समस्ते (?). [५] १ स-शेखरं. ॥ घत्ता ॥ जगें 'णीसावण्ण भमामि । वरि एमहिँ घरं उप्पाडमि' ॥ ९ [५] Jain Education International 5 Ps गुणवंत उ. 6 Ps तो वि एत्त हे. 7 P विहंगमे, विहंगमि. 8PS दहमुहु. 9Ps वर एवहि घर. 5. 1 A सुंदरे. 2Ps सचरियं. 3Ps उभि. 4 A ° झुंवेक्क". भुअवलेण दहवयण मन्दिरं ॥ १ स- चलियं (?) स-जाला - गवक्खयं ॥ २ 10 मणि-कवाड - मणि- मत्तवारणं ॥ ३ वलहि-चन्दसाला-मनोहरं ॥ ४ गुमगुमन्त-रुण्टन्त- छप्पयं ॥ ५ सूरकन्त-ससिकन्त-भूमयं ॥ ६ पोमराय - मरगय- समुज्जलं ॥ ७ मोत्तिएक झुम्वुक झुम्बिरं ॥ ८ ॥ घत्ता ॥ रसकसमसन्तु णिद्दलियउ । लङ्कहैं जो णु दरमलियउ ॥ ९ [६] पञ्च सहासहूँ गेहहुँ भग्गहूँ ॥ १ णं सरवरें पइसरेंवि गइन्हें ॥ २ पाडिय पुर-पओलि णिग्गन्तें ॥ ३ लङ्कहें जीउ णाइँ उड्डन्त ॥ ४ चन्दहासु किर लेइ दसाणणु ॥ ५ 6. 1 PS भग्गइ A भग्गउं. 2 A कडवंदणु. 3PA समीरणे. " 5 For Private & Personal Use Only 15 20 25 www.jainelibrary.org

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