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( १५ ) पुष्पवला बोली,-"महाराज! जिस रास्ते अचित (अपकाय) पानी पड़ता था, उस रास्तेसे मैं गौचरी लेकर आयी हूँ। इस. लिये जिनागमके अनुसार कोई अनुचित नहीं; क्योंकि उसमें इस पातका प्रायश्चित भी नहीं है।"
पुरीश्वर बोले,-"भद्र ! अमुक रास्ते सवित (भएकाय ) पानी और अमुक रास्ते अवित ( अपकाय ) पामो बरसता है, यह शान तुझे किस तरह हुआ? कारण, कि यह बात बिना अतिशय केवल मानके नहीं मालूम हो सकती।"
पुष्पचूलाने कहा,-"महारज ! मुझे आपकी कृपासे केवल झान प्राप्त हुआ है। इसीसे मैं सब कुछ जानती हूं।" ___ यह सुनकर भाचार्य महाराजके मन में केवल ज्ञान प्राप्त करने. की लालसा उमड़ आयी और वे सोचने लगे कि देखे, मुझे इस भवमें केवल ज्ञानकी प्राप्ति होता है या नहीं ?
पुष्पचूला इस बातको समझ गयी, और बोली,-“हे मुनिपाव! माप अधीर न हों गंगा नदी उतरते हुए आपको भी इसी भव केवल ज्ञान प्राप्त होगा ।
यह सनकर भावार्य महाराज गंगा उतरने के लिये कुछ लोगो के संग चल पड़े। वंजा नायपर मार हुए तो वे जिम और गैठे थे, उसी मोरसे नाव दूग्नेको हो जाती थी। इसीलिये वे उन सब मादमियों के बीच में गैठ गये। तातो सारी नाव ही बने लगो। यह देखकर हम सब लोगोंने विचारा कि इस साधु महरजरे ही कारण ना डूब रही है। प्रतएव इस महारमाको,
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