Book Title: Patli Putra ka Itihas
Author(s): Suryamalla Maharaj
Publisher: Shree Sangh

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Page 50
________________ ( ३४ ) * चन्द्रगुप्त चरित्र Oo राजा नन्दके बाद पाटलिपुत्रके राज्यासनपर महा प्रतापी चन्द्रगुप्त राजा हुए। एक समय राजा नन्दकी सभामें चाणक्य नामका एक ब्राह्मण धन पानेकी इच्छासे आया और राजाके सिंहासनपर बैठ गया। उस आसनपर राजा नन्दके सिवा और कोई न बैठता था। राजाके भद्रासनपर चाणक्यको बैठा देख, (परिचायक ) नौकरने पृथक् एक आसन बिछा दिया और विनय पूर्वक कहा, कि आप उस आसनसे उठकर इसपर बैठ जाइये, किन्तु चाणक्यने राज्यासन कोन छोड़ा बलिक उस दूसरे आसनपर अपना कम-एडलु रख उसे भी रोक दिया। इस प्रकार नौकरोंने कई आसन विछाये, पर उसने उनपर भी दण्ड तथा माला आदि वस्तुएँ रख दी और उन सबको भी रोक दिया। इसपर नौकरोंने मारे क्रोधके कुछ ऊंच-नीच शब्द कहते हुए चाणक्यको अपमानके साथ उतार दिया। इस अपमान में चाणक्य मारे क्रोधके आग हो गया और उसकी आँखे लाल हो गयीं। उसने अपनी शिखाको खोल भरी सभामें प्रतिज्ञा की, कि जब तक इस अन्यायी और अभिमानी राजा नन्दको राजगिद्दीसे न उतार लँगा, तबतक इस शिखाको न बाँधंगा। ऐसी भीषण प्रतिज्ञा करके वह चला गया और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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