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[ ४६ ] उपसर्गाः वयं यान्ति छिद्यन्त विघ्नबल्लयः मनःप्रसन्नतामेति पूज्यमानेजिनेश्वरे ॥ १। जो क्षुद्र भी इसको समझ प्रेमाई हो अपनायेंगे पर तुछ शिक्षापर अहो वे ध्यान निज ले जायेंगे पढ़कर न चुप होगे करेंगे कार्यमें परिणत इसे हम भी उफलता सत्य समझ गे अहा अपनी इसे
ओ३म् शान्तिरम्तु शुभमस्तु ॥
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