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( ३८ ) बड़े प्रतापी राजा हुए। अपने शासन कालमें इन्होंने भी बड़ा यश प्राप्त किया। चन्द्रगुप्तके ऐहिक लीला संवरण करके परलोक चले जानेपर उसके पुत्र बिन्दुसार पाटलिपुत्रके राजा हुए। बिन्दुसारके बाद उनके पुत्र अशोक राज्यगद्दीपर आसीन हुए। ये बड़े ही धर्मात्मा, विद्याप्रेमी प्रजा पालक थे। उन्होंने अपने शासन कालमें अनेक शिलालेख, स्तम्भ तथा स्तूप प्रतिष्ठित किये थे। इनके गुण गानसे भारतीय इतिहास आज भी ओतप्रोत है। अशोकका पुत्र कुणाल था। वह दोनों आँखोंका अन्धा था। अतएव उसका पुत्र (अशोकका पौत्र) सम्प्रति नामक अशोकके पश्चात पाटलिपुत्रके राजा हुए। ये बड़े पराक्रमी, पुण्यात्मा तथा शूर-बोर थे। थोड़े हो दिनों में इन्होंने सारे भूमण्डलको अपने आधीन कर लिया और इन्द्रके समान अपने प्रजावर्गका पालन करने लगे। इसी ससय भयंकर दुष्काल पड़ा। इससे साधु लोग यत्र-तत्र निर्वाहके योग्य स्थानोंको चले गये। इससे पठन-पाठन न होनेके कारण वे पठितं विषयों को भी भूलने लगे। जष द्वादशवर्ष व्यापो दुष्काल बीत गया, तब पाठलिपुत्र नगरमें समस्त संघने मिलकर श्रुत झानका मिलान किया, तो ग्यारह मंग मिले; किन्तु बारहवां अङ्ग दृष्टिबाद न मिला। व्यवच्छेद हो गया था। उस समय नेपाल-देशके मार्गमें चतुर्दश दूर्वधर श्रुत केवलो श्रीमद्राहु स्वामी विचरते थे। संघने साधु समुदायको पढ़ाने के लिये श्रोभद्र बाहुजीको बुलाने के लिये दो मुनियोको भेजा, किन्तु उस
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