Book Title: Patli Putra ka Itihas
Author(s): Suryamalla Maharaj
Publisher: Shree Sangh

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Page 55
________________ ( ३६ ) समय भद्रगजो महाराजने महाप्राण नामक ध्यानकी मराधना माराम की हुई थी। अतएव उन्होने साधनोंसे कहा, कि इस समय में पाटलिपुत्र नहीं जा सकता, किन्तु यदि कुछ बुद्धिमान साधु यहां भावें, तो किसी प्रकार मैं कुछ समय निकालकर प्रतिदिक सात पावनाएं दे दिया करूंगा: साधुोंने माकर संघसे यह बात कही और संघने इसे स्वीकार करके स्थूल भद्रादि पांच सो बुद्धिमान साधुओंको दृष्टिबाद पढ़नेके लिये श्रीभद्रबाहुजी माचार्य के पास भेजा। भाचार्य महाराज सबको पढ़ाने लगे। थोड़ी बांचना मिलनेके कारण साधुमोकामन न अमा। अतएक एक कालबाद स्थूलमद्रजीके सिवाय सब साधु लोट आये। भव भावार्य महाराजका सबसमय अकेला श्रीस्थलमद्रजीको ही मिलने लगा। ये महा प्रज्ञावान् भी थे। मंतएव शीघ्र ही चतुदेश पूर्वधर हो गये। भगवान श्रीमहावीर स्वामीके मोक्ष हो गये वाद एक सौ सत्तर वर्ष व्यतीत होनेपर श्रीमद्रबाहु स्वामीने माचार्य पदपर श्रीस्थलमद्रजीको विभूषित किया और उन्हें अपने पर निविष्ट करके स्वर्ग सिधार गये। भाचार्य श्रीस्थलमद्रजीके दो शिष्य थे, जिनमें बडेका नाम भार्यमहागिरिमौर बोटेका माम भार्यसुहस्ती था। ये दोनों ही बरे पवित्र चारित्रवाले भवभोरु मोर धर्म रक्षक थे। प्रशावान होनेसे थोडेही समय में उन दोनों ने गुरु महाराजसे दशपूर्वकी विया पढ़ की। एक दिन अपनी मायुको पूर्ण हुमा समनार महात्मा श्रीस्थूलमदीन दोनों शिष्योंको भाचार्य पद देकर समाधि स्र्म तिथि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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