Book Title: Patli Putra ka Itihas
Author(s): Suryamalla Maharaj
Publisher: Shree Sangh

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Page 49
________________ ( ३३ ) गुप्त बातों की याद करा कर वह उन्हें माहित करना चाहती थी, किन्तु महा धैर्यवान् श्रीस्थूलभद्रजी चलायमान न हुये, बल्कि कोश्या वेश्याके हाव-भाव से दिन-दिन श्रीस्थूलभद्रजीके हृदयमें ध्यानानि देदीप्यमान होती गयी । उस समय सही संयोग कामदेवको उद्दीपन करने वाले थे । एक तो वर्षाकाल, दूसरे चित्रशालाका मकान, तीसरे कोश्याका अनुपम रूप और काम चंष्टाएं - इतने साधन होने पर भी उन महामुनिके मनका भाव ज़रा भी विचलित न हुआ । तब तो कोश्या बहुत ही शर्मिंदा हुई और हाथ जोड़कर अपनी कुचेष्टाके लिये क्षमा प्रार्थना की। वर्षाकाल व्यतीत होनेपर वे तीनो मुनि और श्रीलभद्र घोर अविग्रहोंको पूरा करके गुरु महाराजके पास माये । गुरु महाराजने मीभर मुनियों के आने पर थोड़ार मोर स्थूलभद्रजीके माने पर एकदम मासनसे उठकर स्वागत किया। उन्होंने उन तीनों मुनियों को दुष्करकारक મો स्थूलमद्रजीको दुष्कर दुष्कर कारक कह कर सम्बोधन किया। इस प्रकार स्थूलभद्र जी को प्रतिष्ठा सब मुनियोंसे अधिक हुई तथा चारित्र पाठन में तो ये उस समय भद्वितीय हो गये । इसके बाद श्रीस्थूलभद्रजी तीव्र तपस्याएं करते और मोक प्रकारके अभिग्रहों को धारण करते हुए पृथिवीतलवर विचरने मे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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